SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ atra front टोका ० ५ उ० ४ सू० ३ हरिर्नंग मे विदेवशक्तिनिरूपणम् २१७ हंता, पभू, नो चेवणं तस्स गन्भस्स किंचि वि आबाहं वा, वाबाहं वा उप्पाएज्जा छविच्छेदं पुण करेज्जा, एसुहुमं च णं साहरेज्ज वा, नीहरेज्ज वा ॥ सू० ३ ॥ छाया—हरिः खलु भदन्त ! हरिनैगमेषिः शक्रदूतः स्त्रियाः गर्भं संहरन् किं गर्भात् गर्भ संहरति १ ? गर्भात् योनिं संहरति २ ? यो नितो गर्भ संहरति, ३ ? योनितो योनिं संहरति ४ १ गौतम ! नो गर्भतो गर्भ संहरति, नो गर्भात् योनिं संहरति, नो योनितो योनिं संहरति, परामृश्य, परामृश्य अव्यावाधेन शक्रदूत हरिणे गमेषी देव वक्तव्यता " हरीणं भते ' इत्यादि । सूत्रार्थ - ( हरीणं भते । हरिणेगमेसी सक्कदुए इत्थीगन्भ संहर - माणे किं गभाओ गभ साहरइ ) हे भदन्त ! शक्रसंबंधी तथा शक्र का दूत ऐसा हरिणेगमेषी नामका देव जब स्त्री के गर्भ का संहरणं करता है तब क्या वह उसे एक गर्भाशय से निकाल कर दूसरे गर्भा शय में रख देता है ? (गन्भाओ जोणि साहरइ ) अथवा गर्भाशय से गर्भ को निकाल कर योनिद्वारा उसे दूसरी स्त्री के गर्भाशय में रख देता है ? ( जोणीओ गर्भ साहरइ ) अथवा गर्भाशय से गर्भ को योनिद्वारा बाहर निकाल कर दूसरे गर्भाशय में रख देता है ? ( जोणीओ जोणि साहरइ ) योनिद्वारा गर्भ को बाहर निकाल कर उसे दूसरी स्त्री की योनिद्वारा उसके गर्भाशय में रख देना है ? (गोयमा | नो गाओ गर्भ साहरइ, नो जोणिओ जोणि साहरइ ) हे गौतम । हरिणेगमेषी શક્રના દૂત હરણેગમેષી દેવનું વક્તવ્ય ( हरिणं भंते ! ) त्याहि. सूत्रार्थ - ( हरीणं भंते ! हरिणेगमेसी सक्कदूर इत्थींगव्र्भ सहरमाणे किं गन्भाओ गर्भ साहरइ ) हे लहन्त । शडेन्द्रनो हृत मेव। हरिशु भेषी नामने! દેવ જ્યારે સ્ત્રીના ગભનું સહરણ કરે છે ત્યારે શું તે તેને એક ગ શયમાંથી अढीने जील गर्भशयभा भूडी हे छे ? ( गव्भाओ जोणि साहरइ ) अथवा ગર્ભાશયમાંથી ગર્ભને ખહાર કાઢીને શુ' તે તેને ચેન દ્વારા ખીજી સ્ત્રીના गर्भाशयभां भूडी हे छे ? ( जोणीओ गव्र्भ साहइ ) अथवा गर्भाशयसांथी ગને ચેાનિ દ્વારા બહાર કાઢીને ખીજી સ્ત્રીના ગર્ભાશયમાં મૂકી દે છે? ( जोणिओ जोणि' साहरद्द, ) अथवा योनि द्वारा गर्भ ने महार झढ़ीने तेने श्रील भ ૨૪
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy