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________________ २०! भगवतीय उस्मुयाएज्ज वा' हे गौतम ! तत् तस्मात्कारणात्-यावत्-नो खलु तथा केवली इसेद् वा, उत्सुकायेत वा, यावत्करणात्-" यथा खलु छमस्थो मनुष्यो इसेतु वा, उत्सुकायेत वा" इति संग्राह्यम् । अथ गौतमो जीवस्य कर्मवन्धनविषये पृच्छति-'जीवे णं भंते ! इसमाणे वा उस्सुयमाणे वा, कइ कम्गपयडीओ बंधा? हे भदन्त ! जीवः खलु हसन वा, उत्सुकायमानो वा, कति कियतीः कर्मप्रकृती: बध्नाति ? भगवान् आह-'गोयमा! सत्तविहवंधए वा, अविह बंधए वाई गौतम ! संसारी जीवः सप्तविधवन्धको वा, सप्तप्रकाराणि कर्माणि वध्नाति. अथवा अष्टविधवन्धकः, अप्टमकाराणि कर्माणि वध्नाति, गौतमो नैरयिकविपये पृच्छति 'नेरइएक भंते हसमाणे वा, उस्सुयमाणे वा कद कम्मपयडीओ वंधइ ? नैरयिका खलु भदन्त ! हसन् वा, उत्सुकायमानो वा कति कर्मप्रकृतीः वध्नाति ! भगवाgणं जाव नो णं तहा केवली ) यही बात इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई है । अव गौतम प्रभु से जीव के कर्मवन्धन के विषय में पूछते हैं कि (जीवे णं मते ! हसमाणे वा उस्तुयमाणे वा कह कम्प्रपयडीओ पंधह) हे भदन्त ! हसता हुआ और उत्कंठावाला होता हुआ जीव कितनी फर्म प्रकृतियों का बंध करता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं-' गोयमा ' हे गौतम! (सत्तविहबंधए वा अहविहबंधए वा एवं जाव वेमाणिए ) ऐमा संसारी जीव सात प्रकार के कर्मों का बंध करता है, अथवा आठ प्रकार के कर्मों का बंध करता है। अब गौतम नैरयिकों के विषय में प्रभु से पूछते हैं कि (नेरइएणं हसमाणे वा उस्तुयमाणे वा कइकम्मपयडीओ बधइ) हे भदन्त ! हंसता हुआ तथा उत्सुकतायुक्त हुआ नारक जीव किननी कर्मप्रकृतियों को बंध करता Seal ४२ता नथी. ( से तेणठेणं जाव नो णं तहा केवली ) परात વાત જ આ સૂત્ર દ્વારા સમજાવવામાં આવી છે હવે ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને જીવના કર્મબન્ધન વિષે નીચે પ્રશ્ન પૂછે છે. प्रश्न-(जीवेणं भंते ! हसमाणे वा उस्सुयमाणे वा कइ कम्मपयडीओ बधइ ?) महन्त ! सत। अथसुस्तापापा 42सी प्रतियाना मध मांधे छ ? उत्तर-( गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अविहबंधए वा-एवं जाव वेमाणिर) गौमत ! सेवा संसारी २ सात प्रक्षरना भनि। ५ બંધે છે, અથવા આઠ પ્રકારનાં કર્મોને બંધ બાંધે છે. વૈમાનિકે પર્યન્તના જીના વિષયમાં આ પ્રમાણેજ સમજવું. હવે નારકેના વિષયમાં ગૌતમસ્વામી प्रश्न पूछे छे । (नरइएणं हसमाणे वा उस्सुयमाणे वा कइकम्मपयडीओ बधइ १). ભદન્ત હસતા તથા ઉતિ નારક જીવ કેટલી કમ પ્રકૃતિને બંધ બાંધે છે?
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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