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________________ भगवती Rom वा, यथा हसेद् वा तथा, नवरम्-दर्शनावरणीयस्य कर्मणः उदयेन निद्रायन्ते घा, अंचलायन्ते वा, तत् केवलिनो नास्ति, अन्यत् तदेव । जीवः खलु भदन्त ! तियों को या आठ प्रकार की कर्म प्रकृतियों का बंध करता है। इस प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त जान लेना चाहिये । पहुवचनवाले सूत्रों में जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर तीनभंग जानना चाहिये। (चउमत्थे णं भंते ! मणुस्से निहाएज्ज वा पयलाएज्ज वा) हे भदन्त ! छमस्थ मनुष्य क्या निद्रा लेता है तथा वह क्या खड़ा २ भी निद्रा लेता है ? (हंता निदाएज्ज वा पयलाएज्ज वा-जहा हसेज्ज वा तहा-णवरं दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं निदायति वा पयलायति वासे णं केवलिस्स नत्थि-अनंत चेव ) हां, गौतम ! वह निद्रा लेता है तथा वह खड़े २ भी निद्रा लेता है । जिस तरह से पहिले छद्मस्थ और केवली इन दोनों के विषय में हास्य वगैरह को लेकर प्रश्न और उत्तर कहे गये हैं उसी प्रकार से निद्रा को लेकर भी इन दोनों के विषय में प्रश्न और उत्तर जानना चाहिये । विशेषता केवल यही है कि दर्शनावरणीय कम के उद्य से छद्मस्थ जीव निद्रा लेता है और वह खड़े २ भी निद्रा लेता है, दर्शनावरणीय कर्म केवली भगवान् के है नहीं-वह उनके बिलकुल नष्ट हो गया है इसलिये न उन में निद्रा है और न प्रचला है इलादिरूप से और, समस्त कथन पहिले की तरह सेही जानना પર્યન્સના વિષયમાં સમજવું. બહુવચન વાળા સૂત્રોમાં જીવ અને એકેન્દ્રિયને છોડી દઈને ત્રણ ભંગ સમજવા. (छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से निदाएज्ज वा पयलाएज्ज वा ?) B rd! શું છદ્મસ્થ મનુષ્ય નિદ્રા લે છે? તથા શું તે ઉભે પણ નિદ્રા લે છે? (हंता गोयमा ! निहाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा-जहा हसेज्जवा तहा-णवरं दरिसणावरणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं निहायति वा पचलायंति वा-ते ण केवलिस नत्थअन्नं त चेव) i, गौतम! निद्राले छ तथा तेल Sel निद्रा छ.२ રીતે છશ્વાસ્થ મનુષ્ય અને કેવલી ભગવાનના હાસ્ય અને ઉત્કંઠા વિશેના પ્રશ્નોતરે પહેલાં આપવામાં આવ્યા છે, એ જ પ્રમાણે તે બનેને નિદ્રાના વિષધમાં પણ પ્રશ્નોત્તર સમજી લેવા. તેમાં ફકત એટલી વિશેષતા ઇશાનમાં રખવી છદ્મસ્થ જીવ દર્શનાવરણીય કર્મના ઉદયના લીધે નિદ્રા લેતા હોય છે, પણ કેવલી ભગવાનના દર્શનાવરણીય કર્મને બિલકુલ ક્ષય થઈ ગયેલ હોય છે. તે કારણે તેમનામાં નિદ્રા કે પ્રચલાને અન્તર્ભાવ હોય છે. બીજુ સમસ્ત
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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