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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० ५ ७० ३ सू० २ छद्मस्थशब्दश्रवणनिरूपणम् . १९५ वा, यावत्-शुपिराणि वा शङ्खादिजनितशब्दान् शृणोतीत्यर्थ, पुनगौतमः पृच्छति -'ताई भंते ! किं पुढाई सुणेइ, अपुढाई सुणेइ हे भदन्त ! तोन् उपर्युक्तान् शङ्खादिश ब्दान् किं स्पृष्टान्= श्रोगेन्द्रियेण सह सम्बद्धान् शृणोति ? अथवा अस्पृष्टान् श्रोनेन्द्रियेण सहासम्बद्धानेव शृणोति ? भगवानाह गोयमा ! ' हे गौतन ! 'पुढाई सुणेइ, नो अपुट्ठाई सणेइ तान् खलु शब्दान् स्पृष्टाने व शृणोति, नो अ स्पृष्टान् शृणोति, अथ च 'जाव-नियमा छदिसि सुणेइ ' यावत् नियमात् पनि दिशं शृणोति, मुखादिना शङ्खा देर्भायमाना दुत्पद्यमानाः शब्दः वीचीतरङ्गन्यायेन वा जीव सुसिराणि वा ' शंख के शब्दों को सुनता है यावत् वह शुषिर पोले वांस वगैरह काष्ठ से बनाये गये बाजों के-वांसरी आदि केशब्दों को भी सुनता है । अब इतनी यात जान जाने पर गौतम प्रभु से पुनः पूछते हैं कि ' ताई भंते ! किं पुढाई सुणेइ, अपुट्ठाई सुणेह' हे भदन्त ! छद्मस्थ मनुष्य जो पूर्वोक्त प्रकार के शब्दों को सुनता है सो क्या वह उन्हें कर्ण इन्द्रिय से स्पृष्ट हो जाने पर सुनता है या कणे इन्द्रिय से स्पृष्ट नहीं होने पर भी सुनता है ? इस के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि 'गोयना' हे गौतम ! 'पुट्ठाई सुणेइ, नो अपुट्ठाई सुणे. इ ' कर्ण इन्द्रिय के साथ जब ये पूर्वोक्त शब्द सम्बद्ध हो जाते हैं तभी वह उन्हें सुनता है, अस्पृष्ट अवस्था में वह उन्हें नहीं सुनता है । अथ च-'जाव नियमा छद्दिसिं सुइ ' यावत् छहदिशाओं से आगत उन शब्दों को वह सुनता है। तात्पर्य कहने का यह है कि जब मुख आदि से शंख आदि बजाये जाते हैं तब उनसे उत्पद्यमान शब्द वीचीतरङ्ग તે શંખના ઇનિથી માડીને શુષિર પર્યન્તના ઈવનિને સાંભળે છે પિલા વાંસ આદિમાંથી બનાવેલ વાંસળી આદિના અવાજને શુષિર શબ્દ કહે છે હવે ગૌતમ સ્વામી આ વિષયમાં બીજો પ્રશ્ન પૂછે છે (ताई भंते ! कि पुट्ठाई सुणेइ अपुट्ठाई सुणेइ १) Era ! छथ મનુષ્ય તે શબ્દને કર્ણેન્દ્રિય સાથે સ્પર્શ થાય ત્યારે તેમને સાંભળે છે કે કણેન્દ્રિય સાથે સ્પર્શ થયા વિના પણ તે શબ્દને સાંભળે છે? मा प्रश्नमा वाम भापता महावीर प्रभु ४ छ (गोयमा ! पुदाई सुणे' नो अपुताई सुणेइ) 3 गौतम! ऐन्द्रयनी साथे क्यारे पूरित શબ્દનો સ્પર્શ થાય છે ત્યારે જ તે, તેમને સાભળે તે, અપૃષ્ણ અવસ્થામાં ते तेभर सient नथी मरे (जाव नियमा छहिसि सुणेइ) ७ दिशामांथी આવતા અવાજને સાંભળે છે. કહેવ નું તાત્પર્ય એ છે કે જ્યારે શંખ આદિ વાદ્યોને વગાડવામાં આવે છે ત્યારે તેના અવાજના આદેલને ચારે દિશાઓમાં
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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