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________________ भगवती पाएन समयेन एणं आउयं ' एकम् आयुष्क 'पडिसंवेदेइ' प्रतिसंवेदपति- कहा-'तद्यथा-उमवियाउयंका, परभवियाउयं वा' इहभविकायु या पाभरिशय वेति ।। मृ. १ ॥ ॥ नेरयिकाद्यायुष्यवक्तव्यताप्रस्तावः॥ मृलम्-" जीवणं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववजित्तए सणं किं साउए संकमइ ? निराउए संकमइ ? गोयमा ! साउप संकमद, नो निराउए संकमइ। से णं भंते ! आउए कहि कडे, कहिं समाइण्णे ? गोयमा ! पुरिमे भवे कडे,पुरिमे भवे समाइपणे । एवं जाव-वेमाणिया णं दंडओ। से पूर्ण भने : जे जं भविए जोणिं उबवजित्तए से तमाउय पकरेइ, नं जहा-नेग्इयाउयं वा, जाव देवाउयं वा ? हंता गोयमा! जे जं भविए जोणि उववजित्तए से तमाउयं पकरेइ, तं जहानेण्डयाउयं वा, तिरि-मणु-देवाउयं वा। नेरइयाउयं पकरेमाणे. सत्तविहं पकाइ, तं जहा - रयणप्पभापुढवि नेरइयाउयं वा, जाव-अहेसत्तमा पुढवि नेरइयाउंयं वा । तिरिक्खजोणियाउयं परमाणे पंचविहं पकरेइ, तं जहा-एगिदिय तिरिक्खजोणिजीव ' एक जीव · एगणं ममएणं' एक समय में ' एगं आउयं पडिस देवे? ' ही आयु को भोगना है-'तं जहा-इभवियाउयं वा परभविसर्ग या रानोम भयसंबंधी आयुको भोगता है या परभवसंयंधी आयु को भागना है। दोनों आयुओंको एकमाथ नहीं भोगता ॥स.१॥ ( A) (of आउच पडिस वदेह) । आयुन मागवे - या परभावियाउय) प्रांत 34 साक्ष५ मधी . .. .. ५२१५२ वी सायुने गये थे. परन्तु .... . नयी ॥ १॥
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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