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________________ , प्रमेयचन्द्रिका टीका श०५ उ०३ सू०१ अन्यतीर्थिकमिथ्याज्ञाननिरूपणम् १५९ इति संग्राह्यम् । किन्तु दार्टीन्तिके हि कर्म पुद्गलापेक्षया भारिकत्वमवसेयम् । अथोपर्युक्तानामायुषां वेदनप्रकारमाह-' एगे वि य णं जीवे' एकोऽपि च खलु जीवः, अनेकस्य तु कथैव का 'एगेणं समएणं' एकेन समयेन एकसमयावच्छे देन युगपदित्यर्थः 'दो आउयाई' द्वे आयुषी 'पडिसंवेदेइ ' प्रतिसंवेदयतिअनुभवति । तदेव प्रतिपादयति-' तंजहा' तद्यथा 'इहभवियाउयं च ' इह भविकायुष्कं च एतद्भवसम्बन्ध्यायुः 'परमवियाउयं च' परभविकायुष्कं च परभवसम्बन्ध्यायुः अर्थात् एक एव जीवः एककालावच्छेदेनैव इहभवायुष्यं परभवायुष्यं चानुभवति । उक्तार्थमेव विशदयति - जं समयं इहमवियाउयं परिसंवेदेइ । यं समयम् कालस्यात्यन्त संयोगे द्वितीया इहभविकायुप्कं प्रति में एक एक करके हजारों आयुकर्म क्रम २ ग्रथित हैं। यहां दान्तिरूप अनेक हजार देवादिक भवों में कर्मपुद्धलों की अपेक्षा से भारीपना जानना चाहिये । उपर्युक्त आयुओं को वेदन करने का प्रकार क्या है, सूत्रकार पूर्वपक्ष की ओर से अब इसी बात को प्रकट करते हैं- 'एगे वि य णं जीवे ' अनेक जीवों की तो बात ही क्या है एक भी जीव 'एगेणं समएणं । एक समय में अर्थात एक साथ 'दो आउयाई दो आयुओं का 'पडिसंवेदेइ' अनुभव करता है 'तं जहा द्वारा इसी बात को स्पष्ट किया जाता है इहभवियाज्यं च परभवियाउयं च' एक इसभव संबंधी आयु का वेदन करता है और दूसरे परभवसंबंधी आयु का वेदन करता है । तात्पर्य यह है कि यहां पर सूत्रकार पूर्वपक्ष की ओर से इस बात को प्रकट कर रहे है कि एक जीव एककालावच्छेदेन एक समय में एक साथ इह भवसंबंधी भुज्यमान आयु का और परभवसंबंधी आयु का वेदन करता है । 'जं समयं इहभवियाउयं ભમાં એક એક કરીને હજારે આણ્યકર્મ ક્રમશઃ ગ્રથિત (ગૂંથાયેલા સંબદ્ધ) છે. અહીં ઉપરોક્ત દૃષ્ટાન્ત દ્વારા પ્રતિપાદિત અનેક હજાર દેવાદિક ભામાં કર્મની અપેક્ષાએ ભારેપણું સમજવું જોઈએ. અન્યતીથિકની માન્યતા અનુસાર ઉપર્યુક્ત આયુઓને વેદનથી કઈ રીતે છે તે સૂત્રકાર પ્રકટ કરે છે -(एगे वि यणं जीवे) मने वानी तो पात शी ४२वी ! ५२न्तु मेर ०१ (एगेणं समएणं) मे समये (मेट मे साथे) (दो आउयाइं) मे आयुगानु ( पडिसंवेदेइ) वहन रे छ (स.टस मे भायुमा साग ) (तंजहा) द्वारा मे २५०८ ४२वामां माव्यु छ , ते ०१ ४या ४या ये भायुभानु मे साये वहन ४२ छ.( इहमवियाउयं च परभवियाउयंच) तेल એક સાથે આભવના આયુનું અને પરભવના આયુનું વેદન કરે છે (અન્ય તીથિકની માન્યતા એવી છે કે એક જીવ એક સમયે એક સાથે આ अपना सुन्यमान आयुर्नु मन ५२ सपना मायुर्नु वहन ३२ छ ) ( समय
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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