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________________ १४६ भगवतीस्त्र च यावत्पदेन- केवइयं परिक्खेवे णं ? गोयमा ! दो जोयणसयसहस्साई चक्क वालविखंभेग, पन्नरससयसहस्साई, एकासीयं च सहस्साई, सयं च इगण याले किंचिविसेसूर्ण परिक्खेवेणं पण्णत्ते" इत्यादि ! एतस्य चान्ते-" कम्हाणं भंते । लवण समुद्दे जंबुद्दीवे दीवे नो उन्धीलेइ ? नो उन्धीले ? " इत्यादि प्रश्ने भगवानाह-'गोयमा । जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएमु वासेसु अरहंता, चक्कपट्टी" इत्यादि संग्राह्यम् । ये। यहां जो यह ( यावत् पद प्रयुक्त हुआ है उसले " केवइयं परिक्खेवेगं गोयमा ! दो जोयण सयसहस्साई चकवालविक्खंभेणं पन्नरससयसहस्साइं, एक्कासीयं च सहस्साई सयं च इणयाले किंचिविसेसूर्ण परिक्खेवेणं पण्णत्ते) इत्यादि, इस पाठ का संग्रह हुआ है । इसके अन्त में (कम्हा गं अंते ! लवणसमुद्दे जंबुद्दीवे दीवे नो उन्बीलेइ ?) इस प्रश्न के होने पर भगवान ने कहा ( गोयमा । जंबुद्दीवे दीये भरहेर वएसु वासेसु अरहंता चकवट्टी) इत्यादि का संग्रह हुआ है । तात्पर्य इस पाठ को इस प्रकार से है-हे भदन्त | लवणसमुद्र का घेर कितना कहा गया है ? तो इसका उत्तर इस प्रकार से है-हे गौतम ! दो लाख योजन का तो इसका चक्रवाल विष्कंभ है तथा परिक्षेप पन्द्रहलाख इक्यासी हजार एकसौ उनचालीस योजन से भी कुछ कम कहा गया है इत्यादि, फिर इस सूत्रके अन्त में ऐसा प्रश्न किया है कि हे भदन्त ! लवण समुद्र जंबूद्वीप को क्यों नहीं भर देता (डुवा देता) है इत्यादि ? ४रायो -( केवइयं परिक्खेवेण गोयमा ! दो जोयणसयसहस्साई चकवान विखंभेण पन्नरससयसहस्साई, एक्कासीयं च सहस्साई सयं च इग्णयाले किंचिविसेसूण परिक्खेवेणं पण्णत्ते) वणी ते सूत्र५४२ सन्त नाय प्रभार प्रश्नोत्तर माया छ.-(कम्हाणं भते ! लवणसमुद्दे जबदीवे दीवे नो उन्धीलेइ) (गोयमा ! जबूहीवे दीवे भरहेरवरसु वासेसु अरहता चक्कवट्टी) त्याहि- त સૂત્રપાઠને ભાવાર્થ આપવામાં આવે છે. प्रश्न- G Nerd AqYसभुना राव (परिघ) सो ४ो छ !" ઉત્તર—હે ગૌતમ! તેને ચક્રવાલ વિષંભ (પરિધ) બે લાખ એજન કહ્યો છે અને તેને પરિક્ષેપ પંદર લાખ, એક્યાસી હજાર, એકસે ઓગણ ચાલીસ (૧૫૮૧૧૩૯) જનથી સહેજ ન્યૂન કહ્યો છે. પ્રશ્ન--હે ભદન્ત! લવણસમુદ્ર જંબુદ્વીપને કેમ ભરી દેતે નથી? એટલે
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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