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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० २ सू० २ ओदनादिद्रव्यशरीरनिरूपणम् १३७ केषां जीवानां शरीराणि उच्यन्ते 'इवत्तव्यं सिया?' इति वक्तव्यं स्यात् ? भगवान् आह-'गोयमा हे गौतम ! 'इंगाले, छारिए, भुसे, गोमये' अङ्गारः, क्षारकम् , बुसम् , गोमयः, 'एएणं ' एतानि खलु 'पुबभावपन्नवणं पडुच्छ ' पूर्वभाव प्रज्ञापनां प्रतीत्य-पूर्वभावावस्थापेक्षया ' एगिदियजीवसरीरप्पओगपरिणामिया वि' एकेन्द्रिय जीवशरीरपयोगपरिणामितानि अपि, एकेन्द्रियजीवैः शरीरतया प्रयोगेण स्वव्यापारेण परिणामितानि परिणति पापितानि यानि तानि एकेन्द्रियशरीराणि भवन्तीत्यर्थः समुच्चयार्थकापिशब्देन समुच्चितमर्थ माह-'जाव-पंचिंदिय जीवसरीरप्पओगपरिणामिया वि ' यावत्-पञ्चेन्द्रियजीवशरीरप्रयोगपरिणामितानि अपि, पञ्चेन्द्रियजीवैः शरीरतया प्रयोगेण स्वक्रियात्मकव्यापारेण परिणामितानि-परिणति प्रापितानि यानि तानि पञ्चन्द्रियशरीराणि इत्यर्थः, यावत्करणात्-द्वीन्द्रियजीवशरीरपयोगपरिणामितानि अपि, त्रीन्द्रियजीव शरीरपयोग हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (इंगाले) अंगार (छारिए) भस्म, (भुसे) भुस (गोमए) गोबर, (एएणं) ये सब (पुव्वभावपन्नवणं पडुच) पूर्वभावप्रज्ञापना की अपेक्षा लेकर, (एगिदिय जीव सरीरप्पयोगपरिणामिया वि) एकेन्द्रिय जीवों द्वारा अपने व्यापार से शरीररूप से परिणति को प्राप्त हुए ऐसे हैं-अर्थात् ये एकेन्द्रिय जीव के शरीर हैं ! “वि" शब्द यहां समुच्चयार्थक है सो इससे यह प्रकट किया गया है कि ये सब (जाय पंचिंदियजीवसरीरप्पयोगपरिणामिया वि ) यावत् पंचेन्द्रिय जीवों के भी शरीर हैं। यहां यावत् पद से ये दीन्द्रिय जीवों के, ते इन्द्रिय जीवों के और चौहन्द्रिय जीवों के भी शरीर है ऐसा समझाया गया है । सो ये द्वीन्द्रियादि નોંધ- ઉપરોક્ત પદાર્થોમાંના ભૂસાને તથા ગોમયને ભૂતપૂર્વ પ્રજ્ઞાપનાનયની અપેક્ષાએ દગ્ધાવસ્થાવાળા લેવામાં આવ્યા છે જે એમ ને કરવામાં આવે તે હવે પછી આવતા ધ્યામિત આદિ વિશેષણે તેમની સાથે સુસંગત થઈ શકતા નથી) उत्तर- " गोयमा । " गौतम | "इगाले" मारी, "जरिए ' राम, "भुखे" भूसु भने “गोमए " " एए ण'" ते सघना पहा " पुत्वभावपन्नवण' पडुच्च " पूर्वमा प्रजापनानी अपेक्षा (विस्थानी अपेक्षामा) " एगिदियजीवसरीरप्पयोगपरिणामिया वि" मेन्द्रिय ७वी द्वारा तमना વ્યાપાર (પ્રવૃત્તિ થી શરીરરૂપે પરિણતિ પામેલ જ છે એટલે કે એકેન્દ્રિય पना शरीर छ “वि" शमडी सभुश्ययार्थ छ तेना द्वारा से घट ४२पामा माव्यु छ है तो "जाव पचिदयजीवसरीरप्पयोगपरिणामिया वि" पश्यन्द्रिय पर्यन्तना जवानां पशु शरी२ छे म “जाव" ( यावत) भ १८
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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