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________________ भगवती व्यं स्यात् ? गौतम ! अस्थि, चर्म, रोम, शृङ्गम् , खुरः, नखः, एते समाण जीव शरीराणि, अस्थिध्यामम् , चमध्यामम् , रोमध्यामम् , शृङ्ग-खुर-नखध्यामम् , एतानि पूर्वभावमज्ञापनां प्रतीत्य समाण नीवशरोराणि, ततः पश्चातू-शस्त्रातीतानि यावत्-अग्निः-इति वक्तव्यं स्यात् ? गौतम ! अङ्गारः क्षारकम् , बुसम् , एएणं किं सरीर इ वत्तव्वं सिया) हे भदन्त ! हड्डी, जलीहुई हड्डी, चर्म, जला हुओ चर्म, रोम, जले हुए रोम, सींग, जलो हुआ सींग, खुर, जला हुआ खुर, नख, जला हुआ नख, ये सब पदार्थ किन जीवों के शरीर माने जा सकते हैं ? (गोयमा ! अट्ठी, चम्मे, रोमे, सिंगे, खुरे, नहे, एएणं तसपाणजीयसरीरा, अहिज्झाले, चम्मज्झामे, रोमझामे, सिंग खुर नखज्झामे एएणं पुन्यभावपन्नवणं पडुच्च, तसपोणजीवसरीरा, तओ पच्छा सत्थाईया, जाव अगणित्ति वत्तव्यं सिया) हे गौतम ! हड्डी, चमड़ा, रोम, सींग, खुर, नख, ये सब स जीव के शरीर हैं और दग्धहड्डी, जला हुआ चमड़ा,जला हुआरोम, जला हुआ सींग, जला हुआ खुर, जग हुआ नख, ये सब भी पूर्वभावप्रज्ञापननय की अपेक्षा करके उसजीव के शरीर हैं, परन्तु जब ये ही पदार्थ शस्त्र द्वारा संघटित हो जाते हैं तब यावत् ये सब अग्निकाय जीव के शरीर कहे जा सकते हैं । (अह भंते ! इंगाले, छारिए, भुसे, गोमए, एएणं किं सरीरा इ वत्तव्वं सिया) हे भदन्त ! अझोर, राख, भुसा, गोबर ये सब किस जीवके शरीर माने गये हैं ?, (गोयमा ! इंगाले, छारिए, भुसे, नखज्झामे, एए ण कि सरीराइवत्तव्वं सिया? ) 3 महन्त ! ti, wei 81, यमपणे यम, म. मणेसाभ, शीni. मणेस शीnsi, ખરી, બળેલી ખરી, નખ બળેલા નખ, એ પદાર્થોને કયા જીવના શરીર ४ा छ ? (गोयमा ! अद्वि, चम्मे, रोमे, सि गे, खुरे, नहे एए णं तसपाणजी. व सरीग, अटिज्झामे, चम्मज्झामे, रोमझामे, रोमे,-सिग, खुर, नखज्झामे, एए ण' पुव्वभावपन्नवणं पडुच्च, तसपाणजीवसरीरा, तो पच्छा सस्थाईया, जाव अगणि ति वत्तव्यं सिया) गौतम ! 8331, यम, राम, शिगा, मरी मन નખને ત્રમજીવનાં શરીર કહ્યાં છે, દગ્ધહાડકા, દ%ચર્મ, દગ્ધરમ, દધ્ધશિંગડાં. દગ્ધખરી અને દગ્ધનખને પૂર્વભાવ પ્રજ્ઞાપન નયની અપેક્ષાએ ત્રસજીવનાં શરીર કહા છે, પરંતુ જ્યારે એ પદાર્થોને શસ્ત્રદિ દ્વારા કૂટવામાં આવે છે અથવા અગ્નિદ્વારા ઉપરોક્ત જુદી જુદી ક્રિયાઓ કરવામાં આવે છે ત્યારે તેમને અગ્નિअयनां श२ ४उवामां आवे छ (अह भंते । इंगाले छारिए, भुसे, गोमए, एए कि सरीगइ वत्तव्यं मिया ?) B महन्त | A२, २राम, सूसु, मन छाने या वनi शरीर ४i छ ? (गोयमा । इंगाले, छारिए, भुसे, गोमए
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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