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________________ .. . ... .. भगवतीसूत्रे ॥ओदनादि द्रव्य विशेपवक्तव्यता मूलम्-" अह भंते ! ओदणे, कुम्मासे, सुरा, एएणं किं सरीरा ति वत्तव्वं सिया ? गोयमा ! ओदणे, कुम्मासे, सुराए य जे घणे दवे एएणं पुटवभावपन्नवणं पडुच्च वण्णस्सइ जीवसरीरा, तओ पच्छा, सत्थाईया, सत्थ परिणामिआ, अगणिज्झामिया, अगणिझूसिया, अगणिसविया, अगणि परिणामिया, अगणि जीव सरीरा ति बत्तवं सिया, सुराए य जे दवे दवे एएणं पुव्व भाव पन्नवणं पडुच्च आउ जीव सरीरा, तओ पच्छा सत्था तीआ, जाव-अगणिकाय सरीराइ वत्तव्वं सिया। अहणं भंते ! अये, तंबे, तउए, सीसए, उवले, कसद्विआ, एएणं किं सरीरा त्ति वत्तव्वं सिया ? गोयमा ! अये तंबे, तउए, सीसए, उवले कसट्टिया-एएणं पूवभावपन्नवणं पडुच्च पुढवीजीवसरीरा, तओ पच्छा, सत्थाईआ, जावसे हैं ( से भंते ! किं पुढे उद्दाह, अपुढे उद्दाइ ? गोयमा ! पुढे उद्दाइ, नो अपुढे उद्दाइ )। ( ससरीरी निक्खमह ) इस पाठ द्वारा चतुर्थ आलापक सूचित किया गया है इसमें यह कहा गया कि वायुकायिक जीव मर करके जब द्वितीय गति में जाता है तब वह वहां शरीर सहित भी जाता है और शरीर रहित भी जाता है। इस आलापक का आकार इस प्रकार से है-(से भंते ! कि ससरीरी निक्खमा, असरीरी निक्ख-मइ ? गोयमा! सिय स सरीरी निक्खमइ, सिय असरीरी निक्खमइ ॥ सू० १ ॥ ही। छे. याचे मला५४ नीय प्रमाणे 8-(से भते । कि ससरीरी निक्खमइ असरीरी निक्खमइ ? ) ( गोयमा ! सिय सरीरी निक्खमइ, सिय असीरी निक्खमइ) वायुय ७१ भरी न्यारे द्वितीय गतिमा लय त्यारे शु શરીર સહિત જાય છે કે શરીર રહિત જાય છે ? તેને ઉત્તર આપતા પ્રભુ કહે છે “ હે ગૌતમ તે ત્યાં શરીર સહિત પણ જાય છે અને શરીર રહિત ५ सय छ ॥ सू० १ ॥
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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