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________________ भगवतीसूशे १२३ " निःश्वासे मुञ्चन्ति वा किम् । भगवानाह - 'जहाखंदर तहा ' यथा स्कन्दके तथा, यथा=येन प्रकारेण स्कन्द के = स्कन्द कोद्देशके वायु प्रकरणे अत्रैव भगवतीमु द्वितीयशतकस्य प्रथमोद्देशके चत्वार आलापकाः सन्ति तथा तथैवात्रापि ' चत्तारि आलावगा नेयव्त्रा' चत्वार आलापका ज्ञातव्याः । तत्र चतुष्वलापकेषु प्रथमं आलापकः पूर्वपक्षे प्रतिपादित एव । उत्तरमाह - 'हता गोयमा ! बाउकाएणं जाव नीतिवा' हन्त गौतम 1 वायुकायः खलु यावत् निःश्वसन्तिवा । अथ द्वितीयालापकं सूचयितुमाह- 'अणेगसयस हस्स० ' अनेकशत सहस्रकृत्वः = अनेकलक्षवारमित्यर्थः, द्वितीयालापकस्याकारस्त्वेवम् - " वाउकाएचेव अयोग सय सहस्स खुत्तो, उद्दाइत्ता उद्दात्त तत्थेव भुज्जो भुज्जो पव्त्रायाह ! हंता गोयमा ! जाव पव्वायाइ, निःश्वास के रूप में छोडते हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि ( जहा खंदए तहा चत्तारि आलावगा नेयव्वा ) हे गौतम! जिस प्रकार से स्कन्दकोदेशक में वायु प्रकरण में इसी भगवती सूत्र के द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक में चार आलापक हैं, उसी प्रकार से यहां पर भी चार आलापक जानना चाहिये, इन चार आलापकों में से प्रथम आलापक तो पूर्वपक्ष में प्रतिपादित ही हो चुका है अर्थात् वायुकाय वायुकाय को ही श्वास के रूप में ग्रहण करता है और निःश्वास के रूप में उसे बाहिर निकालता है यह प्रथम आलापक है सो यह प्रथम आलापक तो पूर्वपक्ष के सूत्र में दिखला ही दिया गया है । अब रहे द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ आलापक सो उनमें से द्वितीय आलापक इस प्रकार से है जो ( अणेगसयसहस्त ० ) इस पाठ द्वारा सूचित किया गया है अनेक लाख बार मर करके वायुकाय वायुकाय में ही उत्पन्न होता है इस आलापक का आकार इस प्रकार से है ( वाउकाए णं भंते! वाउकाए चेव अणेगसय सहस्सखुत्तो उद्दाइत्ता उद्दाइन्ता उत्तर- ( जहा खंदर तहा चनारि आलावगा नेयव्वा ) हे गौतम ! ? રીતે જીન્દાદ્દેશકના વાયુપ્રકરણમાં આ વિષે ચાર આલાપક કહ્યા છે, એજ પ્રમાણે અહીં પણુ ચાર આલાપક સમજવા ભગવતીસૂત્રના બીજા શતકમા પહેલા “ઉદ્દેશકના વાયુપ્રકરણમાં એ ચાર આલાપકા ( પ્રશ્નેત્તર ) આપ્યા છે. તે ચાર અલાપકામાંના પહેલા અલાપકનું પ્રશ્નસૂત્ર તેા ઉપર આપી દેવામાં આવ્યુ છે. હવે ખીજા, ત્રીજા અને ચાથા આકાપકો બાકી રહે છે. તેમાંના ખીજો श्यासाय! मा प्रभाएँ छे - ( वाधकार णं भते ! वाउका एचेव अणेगसयसहस्सखुत्तो उदात्ता उद्दाइत्ता तत्थेव भुज्जो भुज्जो पव्वायाइ १) (हता, गोदमा जोव पव्त्रायाइ) डे
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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