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________________ भगवतीसूत्रे हे गौतम! 'जयाणं' यदा खलु ' वाउयाए' वायुकायः 'जहारियं ' यथा रीतम , रीतिः रीतं स्वभाव इत्यथैः, तमनतिक्रम्य यथारीतम् निजस्वभावानुसारम् ‘रीयति ' रोयते गतिं करोति ' तयाणं' तदा खलु 'ईसिं पुरेवाया०' ईपत्पुरोवाताः 'जाव-वायंति ' यावत्-वान्ति, यावत्करणात् पूर्वोक्त-पथ्यवातादिकं संग्राह्यम् । तथा चेपत्पुरोवातादिप्रवहणे वायुकायस्य स्वाभाविकगतिः प्रथमो हेतुरिति प्रतिपादितम् । पुनर्द्वितीय हेतुं विज्ञातुं गौतमः प्रश्नयति-'अत्थि णं भंते ! ईसि पुरेवाया० ? ' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु यत्-ईपत्पुरो वातादयो वान्तीति ? भगवानाह-'हंता, अत्थि' हे गौतम ! हन्त, सत्यम् अस्ति हे भदन्त ! ये ईषत्पुरोवायु आदि वायुऍ कब चलती हैं ? यहाँ यावत् शब्द से (पथ्यात, मन्वात और महावात) इन तीन वायुओं का ग्रहण हुआ है। इस प्रश्न का उत्तर देने के निमित्त प्रभु गौतम से, इन वायुओं के चलने में प्रथम कारण का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! जब (वाउयाए) वायुकाय (अहारियं) स्वभाव के अनुसार (रियति ) गति करता है (तया णं ) तब (ईसिंपुरेवाया) ईपत्पुरोवात आदि वायुएँ (वायंति) चलती हैं। यहां (यावत्) शब्द से अवशिष्ट तीन वायुओंका ग्रहण किया गया है। इस तरह सूत्रकारने इन ईषत्पुरोवायु आदि के चलने में यहाँ वायुकाय की स्वाभाविक गतिरूप प्रथम हेतु को दिखलाया है। अब दूसरा हेतु को जानने के लिये गौतम प्रभु से पूछते हैं कि-(अस्थि णं भंते ईसिंपुरेवाया०) हे भदन्त । ये ईषत्पुरोवात आदि वायुऍ चलती हैं क्या ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (हंता अत्थि) हे गौतम ! हां ये ईषत्पु. વાયુઓના વહનના પહેલા કારણનું પ્રતિપાદન કરવાને માટે મહાવીર प्रभु गौतम स्वामीन वाम मा छ है (गोयमा ) गीतम! (जयाणं पाउयाए) क्यारे पाय ( अहारिय) स्वभाव अनुसार (रियति ) गति परे छ, (तपाण) त्यारे ( ईसिपुरेवाया, वायंति ) षत्पुरोवात माहि वायुभो वाय छ. मी 'जाव' ५४थी माडीमा वायुया ४राया छे. २मा रीते સૂત્રકારે તે વાયુઓના વહનમાં (ચાલવામાં) વાયુકાયની સ્વાભાવિક ગતિરૂપ પ્રથમ કારણનું પ્રતિદાન કર્યું છે. હવે વાયુઓની ગતિનું બીજું કારણ જાણવા માટે ગૌતમ સ્વામી નીચેના प्रश्नो पूछे छ-( अत्थिणं भंते ! इंसिपुरेवाया,) 3 महन्त! ते पत्धुरोपात આદિ વાયુઓ શું વાતા હોય છે? उत्तर-( हता, अस्थि ) , गौतम । ते वायुसी पात डोय छे.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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