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________________ 'भगवतीसत्रे E पत्रनयोः परस्परं विरुद्धत्वात्, उपमर्थोपमर्दकस्वभावत्वाच्च उभयेऽपि ते ईषत्पुरो वातादयः सहैव वातुं नो शक्नुवन्ति इति वोध्यम् । ते च वाताः 'लवणे समुद्दे ' लवणे समुद्रे ' वेलं नाइकमा ' वेळां नातिक्रामति, नोल्लङ्घयन्ति । उपर्युक्तवात द्रव्यसामर्थ्यात् वेलायास्तथास्वभावत्वाच्च तदुपसंहरन् भगवानाह - ' से तेण - द्वेणं' इत्यादि । ' से तेणं जाव- वाया वार्यंति ' हे गौतम! तत् तेनार्थेन यावत् उक्तरीत्या वाता वान्ति, यावत्करणात् पूर्वोक्तं सर्वं संग्राह्यम् । अथ शास्त्रकारो वाताना मवहणे वक्ष्यमाणहेतुत्रयं प्रतिपादयति- ' अस्थि णं भंते ! ' इत्यादि । गौतमः पृच्छति - हे भदन्त ! अस्ति = संभवति खलु एतत्, हवा में परस्पर विरुद्ध होने के कारण और उपमर्थ और उपमर्दका स्वभाव होने के कारण ये दोनों जगह की हवा समुद्र संबंधी ईषत्पुरोवातादिक और द्वीप संबंधी ईषत्पुरोवातादिक-एक साथ नहीं चल सकते हैं ऐसा जानना चाहिये। तथा दूसरी बात यह है कि ये वायु लवणसमुद्र की वेला को उल्लंघन नहीं करती हैं क्यों कि इन बात द्रव्यों का सामर्थ्य ऐसा ही है तथा वेला का भी स्वभाव ऐसा ही है। ( से लेणट्टेणं. जाव वाया वायंति ) इस कारण से हे गौतम | मैंने ऐसा कहा है कि ये वायु एक साथ नहीं चलते हैं, किन्तु उक्त रीति के अनुसार ही चलते हैं। यहां यावत्पद से पूर्वोक्त सब इस विषय संबंधी पाठ ग्रहण किया गया है । अब शास्त्रकार वायुओं के चलने में इन कहे जाने वाले तीन हेतुओं को दिखलाते हैं- (अस्थि णं भंते! ईसिंपुरेवाया, पत्थावाया, मंदाરીનેન્દ્વીપની હવામાં અને સમુદ્રની હવામાં પરસ્પર વિધ હાય છે તે કારણે અને ઉપમ અને ઉપમઈક સ્વભાવ હાવાને કારણે એ અન્ને જગ્યાના ( સમુદ્રની અને દ્વીપની ) ઇષત્પુરાવાત આદિ વાયુએ એક સાથે વાતા નથી. તથા ખીજી કારણ એ છે કે તે વાયુએ લવણુસમુદ્રની વેલાનું ઉલ્લંઘન કરતી નથી, કારણુ કે એ વાતદ્રબ્યાનું સામર્થ્ય એવું જ હોય છે તથા વેળાને સ્વભાવ પણ એવાં ? होय छे. " से तेणद्वेणं जाव वाया वायंति " हे गौतम! ते रथे भे એવું કહ્યું છે કે તે વાયુઓ એક સાથે વાતા નથી, પણ ઉપરોક્ત પદ્ધતિથી वाता होय छे. अहीं ' जाव' पढथी प्रश्नसूत्रभां भावतो पूर्वोक्त समस्त સૂત્રપાઠ ગ્રહણ કરાયેા છે. હવે વાસુ શા કારણે વાય છે ? તે સૂત્રકાર દર્શાવે છે. નીચેનાં સૂત્રો द्वारा वायुनी गतिना भायु भरोनुं सूत्रारे प्रतिपादन यु छे. " अस्थिन'
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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