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________________ भगवतीसूत्रे - -- भगवान् आह-'णो इणहे समझे। नायमर्थः समर्थः, नैतत्सम्भवति । गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति-' से केणष्टेणं भंते !' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन एवं बुच्चइ ' एवम्-' नैतत्संभवति' इति उच्यते ? भगवत उक्तनिषेधस्वरूपमेव स्फुटतया अनुवदति-'जयाणं दीपिच्चया' इत्यादि । यदा खल द्वैप्याः । ईसिं. पुरे वाया. ' ईपत्पुरोवातादयो बान्ति 'णोणं तया' नो खलु तदा 'सामुद्दया' सामुद्रिकाः 'ईसिंपुरे वाया' ईपत्पुरोवातादयो वान्ति, एवं 'जयाण' यदा खलु 'सामुद्दया' सामुद्रिकाः 'ईसिंपुरे वाया०' ईपत्पुरोवातादयो वान्ति, 'णो णं तया' नो खलु तदा 'दीविच्चया' द्वैप्याः ' ईसिंपुरे वाया०' ईपत्पुरो वातादयो वातुमर्हन्ति, ? इति गौतमस्य प्रश्नः । भगवान् तत्र हेतुं प्रतिपादयति'गोयमा । तेसिणं' इत्यादि । हे गौतम ! तेषां खलु पूर्वोक्तानाम् 'वायाणं' पातानाम् ' अन्नमन्नवि वच्चासेणं' अन्योन्यव्यत्यासेन परस्परविपर्ययरूपविईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं (तया ण) तब क्या ( दीविच्चया वि ईसिपुरे वाया०) द्वीपसंबंधी भी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं क्या? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतमसे कहते हैं (जो इणढे सम४) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् ऐसी बात संभावित नहीं होतीहै। ___ इस विषय में कारण जानने की इच्छा से गौतम प्रभु से पूछते हैं कि (से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चह) हे भदन्त ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं कि जब द्वीपसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं, तब समुद्रसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि.वायु नहीं चलते हैं, और जब समुद्र संबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं, तब द्वीपसंबंधी ईषत्पुरोवात आदि वायु नहीं चलते हैं। गौतमस्वामीके इसप्रश्नके समाधान निमित्त कारण प्रकट करते हुए प्रभु उनसे कहते हैं कि-(गोयमा? तेसिंणं वायाणं अन्नमन्नविवच्चासेणं लवणे समुद्दे वेलं नाइकमइ-से तेण?णं जाव वाया वायंति) उत्तर-" णो इणटे सम" गौतम ! मा अर्थ समर्थ नथी भेट કે એવી વાત સંભવી શક્તા નથી. હવે તેનું કારણ જાણવાને માટે ગૌતમસ્વામી नाये प्रमाणे प्रश्न पूछे छे-" से केणटेण भते एवं वुच्चइ" ऽत्यादि महन्त ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે જ્યારે જંબુદ્વીપના ઈષત્પરોવાત આદિ વાયુઓ વાતા હોય છે, ત્યારે સમુદ્રના ઈષત્પરોવાત આદિ વાયુ વાતા નથી, અને જ્યારે સમુદ્રના ઈષપુરવાત આદિ વાયુઓ વાતા હોય છે ત્યારે જ બૂદ્વીપના ઈષ~રેવાત આદિવાયુઓ વાતા નથી? ગૌતમસ્વામીના તે પ્રશ્નનું મહાવીર પ્રભુ આ પ્રમાણે સમાधान ४रे छ-"गोयमा !" गौतम ! "तेसिण वायाण अन्नमन्नविवच्चासेण लवणे समुद्दे वेलं नाइक्कमइ-से तेणटेण जाव वाया चायति" ते वायुभानी ५२२५२
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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