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मैयचन्द्रिका टीका श० ५ उ० २ सू० १ वायुस्वरूपनिरूपणम् १०६ 'मंदावाया' मन्दा वाताः शनैः शनैः स्पन्दमानाः प्रवहणशीलाः वाताः, 'महावाया' महावाताः उद्दण्डप्रचण्डपवनाः 'वायति ?' वान्ति किम् ? भगवान् तस्वीकुर्वन् आह-हंता अत्थि' हन्त, सत्यम् , अस्ति सम्भवत्येतत् त्वत्पश्न विषयीभूता उपयुक्ताः वाताः संभवन्ति इत्यर्थः । पुनौतमः पृच्छति-'अत्थिणं भंते ! ' इत्यादि । हे भदन्त ! अस्ति-सम्भवति खलु एतत्-यदुत 'पुरथिमेणं' पौरस्त्ये सुमेरोः पूर्वदिग्भागे खलु 'ईसि पुरेवाया' ईपत्पुरोवाताः किञ्चिस्निग्धपवनाः 'पत्था वाया' पथ्याः वनस्पत्यादिहितपदाः वाताः 'मंदा वाया' मन्दाः शनैः स्पन्दमानाः वाताः 'महावाया' महावाता: प्रचण्डोद्धताः पवनाः 'वायति' ? वान्ति किम् ? भगवानाह-हता' इत्यादि । 'हंता, अत्थिं' हे गौतम ! इन्त, सत्यम् त्वयोक्तं सर्वम् अस्ति सम्भवति, एवम्-उक्तरीत्या 'पञ्चेहितकारक वायु, (मंदावाया) धीरे२ चलने वाला वायु, (महावाया) बडे भारीवेग से चलनेवाला वायु, ये चार प्रकार के वायु (वायंति) वहते हैं चलते हैं क्या ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (हंता अस्थि ) हां गौतम ! ये सब वायु चलते हैं । अब गौतम पुनः प्रभु से पूछते हैं कि ( अस्थि णं भंते ! ) हे भदन्त ! यह संभवित है कि (पुरथिमे णं) सुमेरू के पूर्वदिग्भाग में ( ईसिंपुरे वाया) कुछ स्निग्ध (चिकण) वायु, (पत्था वाया) वनस्पति आदि को हितकारक पथ्यवायु, (मंदा वाया) धोरे २ चलने वाला वायु, (महावाया ) प्रचण्डवेग से वहलेवाला वायु (वायंति) वहते चलते हैं क्या ? इसके समाधान निमित्त प्रभु गौतम से कहते हैं कि (हंता अस्थि) हां, गौतम! तुम्हारा कहना सब सत्य है। इसी तरह से सुमेरु के पश्चिमदिग्भाग में भी ये पूर्वोक्त सब वायु चलते हैं । अर्थात् सुमेरु के पूर्वदिमाग में जिस प्रकार से ईषत्पुरोवात आदि वायु चलते हैं माहिने भाट ति॥२४ वायु, " मंदावीया " महायु (धार धार पात वायु " महावाया" मने महापात (घg गथी 4 वायु), मे या जाना पायु “वायति" पाय छ ? महावीर प्रभुत प्रश्नना त्त२ मापता छ "हता, गोयमा!" , गौतम ! से यारे प्रश्न वायु पाय छे.
___ -(अस्थिण मते !) महन्त ! शु पात समावित छ (पुरथिमेण) सुभे२ तिना पूर्व हिमागमा ( ईसिंपुरवाया, पत्यावाया, महावाया षायति ! ) पपुवात (स्निायु) ५थ्यमात, मात मन भावात वाय छ।
उत्तर-( हता, अस्थि ) हा गौतम! सुभेरुना पू लागतi l सारे પ્રકારના વાયુ વાય છે. જેવી રીતે સુમેરુના પૂર્વદિવભાગમાં ઈન્દુવાત આદિ