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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श ६ ७७ ५ सू०३ लोकान्तिकदेवविमानादिनिरू० ११२५ ___ गौतमः पृच्छति-'लोगंतियविमाणेसु णं मंते ! केवइय कालं ठिई पण्णता ?' हे भदन्त ! लोकान्तिकविमानेषु कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह'गोयमा ! अट्ठ सागरोवमाई ठिई पण्गता' हे गौतम ! अष्टसागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता । गौतमः पृच्छति-' लोगंतियविमाणेहितो णं भंते ! केवइयं अवाहाए लोगते पण्णचे ' हे भदन्त ! लोकन्तिकविमानेभ्यः कियत्कं कियड्रम् अवाधया 'अन्तरेण व्यवधानेनेत्यर्थः लोकान्तः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह--'गोयमा ! असंखेज्जाई जोयणसहस्साई अबाहाए लोगंते पण्णत्ते' हे गौतम ! असंख्येयानि यिक रूप से, तेजस्कायिकरूप से, वायुकायिक रूप से, वनस्पतिकायिक रूप से देव एवं देवीरूप से उत्पन्न हुए हैं? तब इसके उत्तर में (जाव हंता, गोयमा ! असई अदुवा) इत्यादि रूप से प्रभु ने उत्तर दिया है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछ रहे हैं कि-(लोगंतियबिमाणेसणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) हे भदन्त ! लोकान्तिक विमानों में कितनी स्थिति है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि 'गोयमा' गौतम ! (अट्ठसागरोवमाई ठिई पण्णत्ता) आठ सागरोपम की स्थिति लोकान्तिक विमानों में हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि(लोगंतिय विमाणेहितो णं भंते ! केवइयं अबाहाए लोगंते पण्णत्ते) हे भदन्त ! लोकान्तिकविमानों से लोकान्त कितनी दूर है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम! (असंखेजाई जोयणसहस्साई अचा. हाए लोगंते पण्णत्त) लोकान्तिक विमानों से लोकान्त असंख्यात हजार પૃથ્વીકાયરૂપે. અકાયિક રૂપે, તેજસ્કાયિકરૂપે, વાયુકારિકરૂપે. વનસ્પતિકાયિક રૂપે, દેવ અને દેવીરૂપે ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યાં છે? ઉત્તર–“હા, ગૌતમ!તેઓ ત્યાં અનેકવાર અથવા અનતવાર પૃથ્વીકાલિકથી વનસ્પતિકાયિક પર્યન્તનારૂપે ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યા છે, પણ તેઓ ત્યાં દેવરૂપે કદી પણ ઉત્પન્ન થયા નથી.” गीतभस्वामीन अल-" लोगंतियविमाणेसुण भते ! केवइयं कालं ठि पण्णता ?" महन्त ! allन्ति विमान निवासी हेवानी स्थिति teen अनी छ ? उत्तर-“गोयमा ! अदुसागरोवमाई ठिई पण्णत्ता" गौतम ! તે વિમાને દેવાની સ્થિતિ આઠ સાગરયમની કહી છે. प्रश्न-" लोगतिय विमाणेहितो ण भंते ! केवइयं अबाहाए लोगते पण्णत्ते " महन्त ! astrds विमानाथी asided भतरे छ ? उत्तर-"गोयमा! असंखेज्जाइ जोयणसहस्साई अबाहाए लोगंते पणते " ગૌતમ! કાતિક વિમાનેથી લોકાન્ત અસંખ્યાત હજાર એજન દૂર છે.
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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