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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ६ उ० ५ सू० २ कृष्णराजिस्वरूपनिरूपम् १०९७ कृष्णराजिषु महान्तो मेघाः स स्विवन्ति, समूछन्ति वर्षन्ति च, इति, गौतमः पृच्छति-तं भंते ! किं देवो पकरेइ, असुरो पकरेइ, नागो पकरेइ ? हे भदन्त ! कृष्णराजिषु तत्-संस्वेदनं, संमूर्च्छन, संवर्पण च किं देवः प्रकरोति, असुरः प्रकरोति, नागो वा प्रकरोति ? भगवानाह- गोयमा । देवो पकरेइ, णो असुरो, णो नागो पकरेइ' हे गौतम ! कृष्णराजिषु मेघानां संस्वेदनादिकं देवः प्रकरोति, असुरो नागच न प्रकुरुतः असुरकुमारनागकुमाराणां तत्र गमनासंभवात् । गौतमः पृच्छति-'अत्थिणं भंते ! कण्हराईसु बायरे थणियसद्दे' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु कृष्णराजिषु वादरः स्थूलः स्तनितशब्दः घनगर्जनात्मकः ? भगवानाह'जहा उराला तहा' यथा उदारा मेघाः कृष्णराजिषु संस्विद्यन्ति इत्यादि पतिको प्राप्त होते हैं, संसूच्छित होते हैं और वृष्टि करते हैं। इस पर गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि-(तं भंते ! कि देवो पकरेइ, असुरो पकरेइ, नागो पकरेइ) हे भदन्त ! कृष्णराजियों में विशाल मेंघो का संस्वेदन संमूछन एवं-संवर्षण कौन करता है-क्या देव करता है, या असुर करता है ? या नाग करता है ? उत्तर देते हुए प्रभु उनसे कहते हैं कि-(गोयमा) हे गौतम ! मेघों का संस्वेदन आदि (देवो) देव (पकरेह) करता है। (णो असुरो णो नागो पकरेइ) असुर नहीं करता है और न नाग ही करता है। क्यों कि असुरकुमार और नागकुमार का वहां गमन ही संभवता नहीं है । गौतम पुनः प्रभु से पूछते हैं कि -(अस्थि णं भंते ! कण्हराईसु बायरे थणियसद्दे ) हे भदन्त ! कृष्णराजियों में क्या बादर स्तनित-मेघनिर्घोष होता है ? इसके उत्तर में प्रभु થાય છે-વિશાળ મેઘ ત્યાં સંદન પામે છે, સંભૂતિ થાય છે અને વૃષ્ટિ १२सावे छे. . प्रश्न-(त भते ! कि देवो पकरे इ, असुरो पकरेइ, नागो पकरेइ १) હે ભદન્ત! કૃષ્ણરાજિઓમાં વિશાળ મેદ્યનું સંવેદન, સમૂછન, અને સંવ ર્ષણ કેણ કરે છે? શું દેવ કરે છે? અસુરકુમાર કરે છે? કે નાગકુમાર કરે છે? उत्तर-(गोयमा !) गौतम ! भानु सस्वहन माह (देवो पकरेइ) हेव ४रे छे, (णो असुरो णो णागो पकरेइ) असुरभार ४२ता नथा अने. નાગકુમાર પણ કરતા નથી. તેનું કારણ એ છે કે અસુરકુમાર અને નાગ કુમારનું ત્યાં ગમન જ સંભવિત નથી. प्रश्न-(अस्थि ण भते ! कण्हराईसु बायरे-थाणिय सद्दे १ ) 8 महन्त ! કૃષ્ણરાજિએમાં શું બાદર સ્વનિત શબ્દ એટલે કે મેઘ ગર્જનને અવાજ થાય છે? भ १३८
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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