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________________ - भगवतीले भ्यन्तरा कृष्णराजिः उत्तरवाह्यां कृष्णराजि स्पृष्टा, उत्तराभ्यन्तरा कृष्णराजिः पौरस्त्यवाह्यां कृष्णराजिं स्पृष्टा, द्वे पौरस्त्यपाश्चात्ये, वाह्ये कृष्णराजी पडले, द्वे उत्तर-दक्षिणवाह्ये कृष्णराजी व्यस्ने, द्वे पौरस्त्य-पाश्चात्ये अभ्यन्तरे कृप्णराजी चतुरस्ने, द्वे उत्तर-दक्षिणेआभ्यन्तरिके कृष्णराजी चतुरसे, "पूर्वापरे पइने, व्यस्त्रे पुनर्दक्षिणोत्तरे वाह्ये, आभ्यन्तरचतुरस्राः सर्वा अपि च कुष्पराजयः।।१॥ कृष्णराजयः मदिगविभाग के बाहिर की कृष्णाजि का स्पर्श करती है। पश्चिमदिग्भाग के भीतर की जो कृष्णराजि है वह उत्तरदिग्भाग के बाहर की कृष्णराजि का स्पर्श करती है । और उत्तर दिशा के भीतर की जो कृष्णराजि है वह पूर्वदिग्भाग के बाहर की कृष्णराजि को छूती है। .:दो पुरथिमपञ्चत्थिमाओ याहिराओ कण्हराइओ छलसाओ दो उत्तर दाहिणवाहिराओ कण्हराईओ तंसाओ, दो पुरथिम पच्चत्थिमाओ अभितराओ कण्हराईओ चउरंसाओ, दो उत्तरदाहिणाओ अभित राओ कण्हराईओ चउरंसाओ, __ "पुव्वाऽवरा छलंसा, तसा पुण दाहिणुत्तरा वज्झा। अभितर चरंसा सन्या वि य कण्हराईओ" ४३) पूर्व और पश्चिमके चाहरकी जो दो कृष्णराजियां हैं वे छह खूटवाली हैं। उत्तर और दक्षिण के बाहर की जो दो कृष्णराजियां हैं वे तिखूटी हैं। पूर्व और पश्चिम के भीतर की जो कृष्णराजियां हैं वे चौखुटी हैं। तथा उत्तर और दक्षिण के भीतर की जो दो कृष्णराजियां हैं वे भी चौखूटी हैं। इसी विषयको पुन्यावरा 'इत्यादि' गाथामें कहा है कि पूर्व और पश्चिम કૃષ્ણરાજિ છે તે પશ્ચિમ દિભાગની બહારની કૃષ્ણરાજિને સ્પર્શે છે, પશ્ચિમ દિભાગની અંદરની જે કૃષ્ણરાજિ છે તે ઉત્તર દિવભાગની બહારની કૃષ્ણરા, જિને સ્પર્શે છે. અને ઉત્તર વિભાગની બહારની જે કૃષ્ણરાજિ છે તે પૂર્વ हिमानी मानी ०४ २५0 छे. (दो पुरथिमपच्चत्थिमाओ बाहिराओ कण्हराइओ छलसाओ. दो उत्तरदाहिणवाहिराओ कण्हराईओ तसाओ, दो -पुर. त्थिमपच्चत्थिमाओ अभितराओ कण्हराईओ चउरसाओ, दो उत्तरदाहिणाओ अभितराओ कण्हराईओ चउरसाओ, “पुव्वाऽवरा उलंसा, तसा पुण दाहिणुतरी बझा। अभितर चरसा सव्वा वि य कण्हराईओ" ४३) पूर्वा मन પશ્ચિમમાં બહારની જે બે કૃષ્ણરાજિઓ છે તે છ ખૂણાવાળી છે, ઉત્તર અને દક્ષિણમાં બહારની જે બે કૃષ્ણરાજિઓ છે તે ત્રણ ખૂણાવાળી છે, પૂર્વ અને પશ્ચિમમાં અંદરની જે કૃષ્ણરાજિઓ છે તે ચાર ખૂણાવાળી છે, તથા ઉત્સર અને દક્ષિણ દિશામાં અંદરની જે કૃષ્ણરાજિઓ છે તે પણ ચાર ખૂણાવાળી છે
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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