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________________ .२०७४ भगवतीसूत्र कृष्णराजिवक्तव्यता। तगस्कायसादृश्यात् कृष्णराजिं प्रख्पयितुमाह-'कइणं भंते ! 'कण्हराईओ' इत्यादि। ___मूलम् - कइ णं भंते ! कण्हराईओ पण्णत्ताओ ? गोयमा ! अट्र कण्हराईओ पण्णत्ताओ कहि णं भंते ! एयाओ अट्ट कण्हराईओ पण्णताओ? गोयमा ! उम्पिं सणंकुमारमाहिंदाणं कप्पाणं हिहि वंभलोए कप्पे अरिटं विमाणपत्थडे-एत्थ णं अक्खाडगसम चउरंससंठाणसंठियाओ अट्ट कण्हराईओ पण्णताओ, तंजहा-पुरथिमेणं दो, पञ्चत्थिमेणं दो, दाहिणेणं दो, उत्तरेणंदो, पुरस्थिमऽभंतरा कण्हराई दाहिण-बाहिरं कण्हराइं पुट्टा, दाहिणऽभतरा कण्हराई पच्चत्थिम-वाहिरं कण्हराई पुट्टा, पच्चस्थिमऽभतरा कण्हराई उत्तर-वाहिरं कण्हराई पुट्ठा, उत्तरमऽ भंतरा कण्हराई पुरस्थिमवाहिरं कण्हराइं पुढा, दो पुरस्थिमपच्चत्थिमाओ बाहिराओ कण्हराईओ छलंसाओ, दो उत्तरउत्पत्ति संभवित है-वाकी के पृथिवी जीव और अग्नि जीव वहां पर उत्पन्न नहीं हो सकते हैं क्यों कि वहां पर उनका स्वस्थान नहीं है। तमस्काय का आकार इस प्रकार से है । सू०१॥ થાય છે, કારણ કે ત્યાં તેમની ઉત્પત્તિ સંભવિત છે. બાકીના પૃથ્વીકાયિક છે અને અગ્નિકાય છે તેમાં ઉત્પન્ન થઈ શકતા નથી, કારણ કે ત્યાં તેમનું સ્વસ્થાન નથી. તમસ્કાયને આકાર નીચે પ્રમાણે છે. એ સૂત્ર ૧ છે
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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