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________________ १०० भगवती सूत्रे सूर्य - ग्रहगण - नक्षत्र - तारारूपाः भवन्ति ? भगवानाह - ' णो इण्डे समट्ठे-पलिपस्सओ सओ पुण अस्थि' हे गौतम ! नायमर्थः समर्थः, तमस्काये चन्द्रादयो ज्योतिष्का न भवन्ति किन्तु परिपार्श्वतः पुनस्ते भवन्ति, नमस्कायस्य परिपार्श्वतः चन्द्रादयः सन्तीत्यर्थः । गौतमः पृच्छति - 'अस्थि णं भंते । तमुक्काए चंदाभा इवा, सूराभा इ वा?' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु तमस्काये चन्द्राभा चन्द्रप्रभा - ज्योत्स्ना इति वा भवति ?, तथा सूर्याभा रविदीधितिर्भवति किम् ? भगवानाह - 'णो इणट्ठे समट्ठेकाणिया पुण सा' हे गौतम ! नो अयमर्थः समर्थः तमस्काये चन्द्राभा, सूर्याभा च न भवति, तमस्कायपरिपार्श्वतश्चन्द्रादीनां सद्भावात् तत्प्रभाऽपि तत्र न संभवत्येवेत्याशङ्कां निरसितुमाह - ' कादूपणिका पुनः सा' तथा च तमस्कायपार्श्वे हे भदन्त ! तमस्काय में चन्द्रमा, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र, एवं तारारूप होते हैं क्या ? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं किहे गौतम! ( णो इण सम, पलियासओ पुण अस्थि ) यह अर्थ समर्थ नहीं है - अर्थात् तमस्काय में चन्द्रादिक ज्योतिषिक देव तो नहीं हैं, पर ये देव उसके पार्श्वभाग में अवश्य हैं । (अत्थि णं भते ! तमुक्काए चंदाभाइ वा सूराभाइ वा ) हे भदन्त । तमस्काय में चन्द्र की प्रभा या सूर्य की मभा है क्या ? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि ( गोधमा ! णो इणडे समट्ठे कादूसणिया पुण सा ) हे गौतम! यह अर्थ समर्थ नहीं है - अर्थात् तमस्काय में चंद्रप्रभा और सूर्यप्रभा नहीं है । पर ये चन्द्रादिक जब उसके पार्श्वभाग में हैं तो उनकी आभा तो वहां अवश्य पड़ती होगी ? तो इस शंका का समाधान यह है कि तमस्काय के तरक में चन्द्रप्रभा आदि के सद्भाव में भी इनकी प्रभा का वहां स्वतंत्र अस्तित्व लक्षित नहीं होता है अर्थात् यह प्रभा वहां पडती प्रश्न - ( अस्थि भंते ! तमुक्काए चदिम, सूरिय, गगणणक्खत्ततारारूवा १ ) હે ભદ્દન્ત ! તમસ્કાયમાં શું ચન્દ્રમા, સૂર્ય, ગ્રહગણુ, નક્ષત્રા અને તારા હાય છે ખરાં ? उत्तर- ( जो इणडे समट्टे, पलियरसभ पुण अत्थि ) हे गीतभ ! मे શકય નથી. સમસ્યાયમાં ચન્દ્રાદિક ાતિષિક દેવા તા નથી, પણ તે ચૈતિ ષિક દેવા તેના પાશ્વ ભાગમાં ( ખજીમાં ) અવશ્ય છે.' प्रश्न - ( अस्थि भंते! तमुक्काए चंदाभाइ वा सूराभाई वा १ ) હાઇબ્ન ! તમસ્કાયમાં ચન્દ્રમાની પ્રભા (પ્રકાશ) અથવા સૂર્ય ની પ્રભા હોય છે ખરી ? उत्तर- ('जो इणट्ठे सम े ) ' डे गौतम ! तमस्अयभां यन्द्रंनी अर्थवा तो सूर्यनी अला होती नथी. “ कादूसणिया पुणे सा " परन्तु यन्द्राहि तेनी બાજુમાં હાવાથી તેના પ્રકાશ તે ત્યાં પડતા હશે. આ શકાનું સમાધાન 66
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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