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________________ प्रमैयचन्द्रिका टी० श० ६ उ० ५ सू० १ तमस्कायस्वरूपनिरूपणम् १०६७ संभवति यत् तमस्काये उदारा मेवाः संस्विद्यन्ति सम्मूर्च्छन्ति, संवर्षन्ति च । गौतमः पृच्छति-' तं भंते ! किं देवो पकरेइ, असुरो पकरेइ, णागो पकरेइ ? ' हे भदन्त ! तत् स्वेदनं संमूर्च्छन वर्षणश्च किं देवः प्रकरोति, अथवा असुरः प्रकरोति, अथवा नागः प्रकरोति ? । भगवानाह-'गोयमा ! देवो विपकरेइ, असुरो वि पकरेइ, णागो वि पकरेइ ' हे गौतम ! तत् खलु संस्वेदनं संमूछेनं वर्षणं च देवोऽपि प्रकरोति, असुरोऽपि प्रकरोति, नागोऽपि प्रकरोति । गौतमः पृच्छति-'अस्थि णं भंते ! तमुक्काए वायरे थणियसदे, वायरे विज्जुए ?' हे भदन्त ! अस्ति संभवति खलु तमस्काये वादरः स्तनितशब्द: घनगर्जनम् ? तथा वादरा विद्युत् ?, भगवाउत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं कि-हे गौतम ! (हंता अस्थि ) ऐसा होता है कि-उदार मेघ उस तमस्काय में संस्वेद जनक पुद्गल स्नेहरूप संपत्ति से गीले होते हैं, परस्पर के संयोगरूप से वे वहाँ एकत्रित होते हैं और वरसते हैं। अब गौतम स्वामी प्रभु से पूछते हैं कि-(तं भंते! किं देवो पकरेइ असुरो पकरेइ, णागो पकरेइ ?) किं हे भदन्त ! इस संस्वेदन, संमूर्च्छन और वर्षण को क्या देव करता है ? अथवा असुर करता है ? या नाग करता है ? इस के उत्तर प्रभु उनसे कहते हैं कि(गोयमा) हे गौतम! (देवो विपकरेइ, असुरो विपकरेइ, णागो वि पकरेइ ) उस संस्वेदन को, संमूच्छिम को एवं वर्षण को देव भी करता हैं, असुर भी करता है और नाग भी करता है। (अस्थि णं भंते ! तमुक्काए घायरे थणिय सद्दे, बायरे विज्जुए) हे भदन्त ! उस तमस्काय में बादर स्तनित शब्द-घनगर्जन, तथा बादर ..तना उत्तर भापता महावीर प्रभु ४ छ-" हंता अस्थि " गौतम । એવું જ થાય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે વિશાળ મેઘ સમસ્કાયમાં સંવેદ જનક પલેની સ્નિગ્ધતારૂપ સંપત્તિથી ભીંજાય છે, પરસ્પરના સાગથી તેઓ ત્યાં એકત્રિત થાય છે અને વરસે છે. ! प्रश्न-" त' भते । कि देवो पकरेइ, असुरो पकरेइ, णागो पकरेइ ? " હે ભદન્ત ! તે સંવેદન, સમૂચ્છન (એકત્રિત કરવાની ક્રિયા ) અને વર્ષણ ( વરસાવવાની ક્રિયા) શું દેવ કરે છે? કે અસુરકુમાર કરે છે? કે નાગકુમાર કરે છે ? महावीर प्रभुना उत्तर-( देवो वि पकरेइ, असुरो वि पकरेइ, णागो वि पकरेइ) गौतम ! ते सरवहन, संभून अने वर्ष ३१ ५ ४२ છે, અસુર પણ કરે છે અને નાગ પણ કરે છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-( अस्थिग भंते ! तमुक्काए बापरे थणियनदे,
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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