SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1088
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ refer टीका श० ६ उ० ५ सू०१ तमस्कायस्वरूपनिरूपणम् २०६५ भाषः । गौतमः पृच्छति - 'अस्थि णं भंते! तमुक्काए गामा इवा, जाव-सन्निवेसा 'इवा ? ' हे भदन्त ! अस्ति सभवति खलु यत् तमस्काये ग्रामाः इति वा यावत्`सन्निवेशाः समागतसार्थवाहादिनिवासस्थानानि भवन्ति किम् ? यावत्करणात् - आकर 'नगर - खेट - कर्बट - मडम्ब - द्रोणमुख-पत्तन- निगमाश्रम-संवाहानां संग्रहः, तत्रआकराः स्वर्णरत्नाद्युत्पत्तिस्थानानि इति वा नगराणि - अष्टादशकर व र्जितानि - इति वा खेटानि - धूलिमाकारवेष्टितानि इति वा, कर्बटानि - कुत्सितग्रामा इति वा, मडम्बानि-सार्ध - क्रोशद्वयान्तरग्रामान्तररहितानि इति वा, द्रोणमुखानि - जलस्थलपथोपेतानि जनस्थानानि पत्तनं समस्तवस्तु प्राप्तिस्थानं निगमाः - प्रभूततरवणिग्जननिवासा इति वा, करते हैं - ( अस्थि णं भंते! तमुक्काए गामाइ वा जाव सन्निवेसाइवा ) हे भदन्त ! क्या यह बात संभवित होती है कि उस तमस्काय में ग्राम 'या यावत् सन्निवेश हों ? यहां यावत् शब्द से " आकर, नगर निगम, खेट, कर्बट, मडम्ब, द्रोणमुख, आश्रम और संवाह इन का संग्रह हुआ है। जहां पर स्वर्ण रत्न आदि पदार्थ उत्पन्न होते हैं उसका नाम आकर 'है, १८ अठार प्रकार के टेक्सों से रहित जन स्थान का नाम नगर है, 'जिसमें अधिक संख्या में व्यापारी जनोंका निवास हो उसका नाम निगम है। धूल के प्राकार से वेष्टित जनस्थान का नाम खेट है, छोटे गाँव का नाम कर्बट है । जिसकी चारों दिशाओं में २॥ कोश तक कोई गाँव न हो उसका नाम मडम्ब है । जलमार्ग और स्थलमार्ग इन दोनों मार्गों से ही जिसमें जाया जाना होवे उसका नाम द्रोणमुख है । तापस प्रश्न - ( अस्थि भंते ! तमुक्काए गामाइ वो, जाव सन्निवेसाइ वा १ ) डेलहन्त ! शु' तभस्यमा गाभ; भा४२, नगर निगम, भेट, डमंट, મડમ્બ, દ્રોણુમુખ, પત્તન, આશ્રમ, સવાહન અને સન્નિવેશ હાય છે ખરાં ? ( जाव ) पहथी श्रणु अश्वामां आवेलां शम्छो सहित अर्थ साध्यो छे. જ્યાં સુવર્ણ રત્ન આદિ પદાર્થ ઉત્પન્ન થાય છે, એ સ્થળને આકર કહે છે. ૧૮ પ્રકારના કરાથી રહિત જનસ્થાનને નગર કહે છે, જ્યાં અધિક પ્રમાણમાં વ્યાપારી રહેતા હેાય એવાં સ્થાનને નિગમ કહે છે. ધૂળના કેટની ઘેરાયેલા જનસ્થાનને ભેટ કહે છે. નાના ગામને કટ કહે છે. જેની ચારે દિશામાં રા કાશ પર્યન્તમાં કોઈ પણ ગામ ન હાય એવા સ્થાનને મમ્મ કહે છે. જળમાર્ગ અને જમીન માગે એમ અને માગે-જે સ્થળે જઈ શકાય છે એવા સ્થળને દ્રોણુમુખ કહે છે, જ્યાં તાપસેા રહેતા હાય, તે સ્થાનને भ १३४
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy