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________________ % 3D १०५२ भगवतीसूत्र वा पोच्यते ? भगवानाह-' गोयमा ! णो पुढवी तमुक्काए ति पव्वुच्चइ ' हे गौतम ! तमस्कायः नो पृथिवी इति प्रोच्यते, अपितु 'आउतमुक्काए त्ति पव्वुच्चइ ' तमस्कायः आपो जलम् इति पोच्यते । गोतमः पृच्छति-' से केणढेणं ?' हे भदन्त ! तत् केनार्थेन एवमुच्यते तमस्कायः नो पृथिवी, अपितु जलम् , इति । तो निश्चित है अब उसमें यह निश्चित नहीं है कि वह किस पदार्थ का स्कन्धरूप है-क्यों कि या तो वह पृथिवी रजः स्कन्धरूप हो सकता है या उदकरजः स्कन्धरूप हो सकता है अन्य स्कन्धरूप तो हो नहीं सकता कारण कि इन दोनों से भिन्न जो स्कन्ध हैं उनमें तमस्काय की सहशता का अभाव है। अतः गौतम ने इसी हृदयस्थ विकल्प को " किं पुढवी तमुक्काए त्ति पन्चुच्चह, अथवा (आउ तमुक्काए त्ति पन्चुच्चइ" इस सूत्र पाठ द्वारा व्यक्त किया है। इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम ! (णो पुढवी तमुक्काए त्ति पन्चुच्चइ) पृथिवीरूप तमस्काय नहीं हैं, अपितु (आउ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चह) अप्कायरूप तमस्काय हैं-ऐसा मैं कहता हूं, अब गौतमस्वामी इसमें कारण जानने की इच्छा से प्रभु से पुनः प्रश्न करते हैं-(से केणद्वेणं) हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि तमस्काय पृथिवीरूप नहीं है-अपितु अप्कायरूप है ? इसके उत्तर में प्रभु उनले कहते हैं કયા પદાર્થના સ્કન્વરૂપ છે, કારણ કે કાં તે તે પૃથ્વી રજ: કન્વરૂપ હાઈ શકે છે, અથવા તે ઉદક (જળ) રજ: કન્વરૂપ હોઈ શકે છે અન્ય સ્કન્ધ રૂપ તે તે હોઈ શકતો નથી કારણ કે એ બનેથી જુદા જ પ્રકારના જે સ્કન્ય છે, તે સ્કમાં તમસ્કાયની સદૃશતા (સમાનતા) ને અભાવ હોય छे. तेथी गौतम स्वाभास तमना स्यमा ससा मा विपन " किं पुढवी तमुक्काए त्ति पवुच्चइ” अथवा “ आउतमुक्काए ति पव्वुच्चइ " मा સૂત્રપાઠ દ્વારા વ્યક્ત કર્યો છે. ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્નનો જવાબ આપતા મહાવીર પ્રભુ કહે છે“गोयमा ! णो पुढवी तमुकाए ति पव्वुच्चइ” गौतम ! तमाय पृथ्वी३५ नथी. ५२न्तु “आउ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चइ " ५५ तमाय म५४४५३५ छ એવું હું કહું છું કે હવે તેનું કારણ જાણવાને માટે ગૌતમ સ્વામી પૂછે છે "से केणटेणं "D महन्त ! मा५ । आरणे मे ४ । छ। तभ. કાય પૃથ્વીરૂપ નથી, પણ અપૂકાય રૂપ છે? तेना उत्तर भापता महावीर प्रभु ४ छ -“ गोयमा ! पुढविकाए गं
SR No.009314
Book TitleBhagwati Sutra Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year
Total Pages1151
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size74 MB
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