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________________ - - ___७५४ . ___... : : .. .. भगवतीय विकुर्वणाधिकारात् तस्करणसमर्थचमरादीन्द्राणामात्मरक्षकदेववक्तव्यतामा'चमरस्सणं' इत्यादि। मूलम् 'चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स, असुररण्णो कई आयरक्खदेवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ? गोयमा! चत्तारि चउसट्टीओ आयरक्खदेवसाहस्सोओ पण्णत्ताओ, तेणं आयरक्खा वण्णओ, एवं सवेसि इंदाणं जस्स जत्तिआ आयरक्खा ते. भाणियवा ? सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति ॥ सू० ३.॥ . . . छायः- चमरस्य खलु भदन्त ! अमरेन्द्रस्य असुरराजस्य, कति आत्मरक्षकदेवसाहरुयः प्राप्ताः, ते . खलु आत्मरक्षकाः-वर्णकः, एवं सर्वेषाम् समर्थ है परन्तु वह इतने अधिकरूपोंकी विकृवणा नहीं करता है कि जिससे वह समस्त जंबूदीप एवं असंग्गयात द्वीप समुद्रो को भर दे। ऐसे अनेकरूपोंकी विकुर्वणा करके समस्त जंबुद्धीपादिकों पूर्णरूप से भर देनेकी उसमें शक्ति है यही बात इस कथन से कही गई है। इस प्रकारसे सन्निवेशतक का आलापक जानना चाहिये ॥सू.२॥ चमरके आत्मरक्षक देवोंकी विशेपवक्तव्यता'चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स' इत्यादि ।। सूत्रार्थ-(चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररणों) हे भदन्त ! ' असुरेन्द्र असुरराज चमरके (कह आयरवखदेवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ) कितने हजार आत्मरक्षक देव कहे गये हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (चत्तारिचउसट्टीओ आयरक्खदेवसाहस्सीओ पण्णत्ताओ) दो लाख કરવાને સમર્થ છે. જે તે ધારે તે એવાં રૂપથી સમસ્ત જંબુદ્વીપને અને અસંખ્યાત દ્વીપ સમુદ્રોને પણ ભરી શકવાને સમર્થ છે. પણ આજ સુધી તેણે કદી એવી વિકા કરી નથી. કરતું નથી, અને કરશે પણ નહીં. તેની વિકૃર્વ શકિતનું પ્રદર્શન કરવાને માટે જ ઉપરનું કથન કરાયું છે. | સૂ૨ છે ચમરના અમરક્ષક દેવાનું વિશેષ વર્ણન'चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स. त्यादि-. . सूत्रार्थ-(चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुररण्णो) 35-त ! मसुरेन्द्र असु२२।४ यभरना (कइ आयरक्खदेवसाहस्सीओ'पण्णताओ?) भरक्ष४ . यो ४८ ल ४ छ ? (गोयमा !) silap (चत्तारि चउसट्टीओ आय
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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