SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 973
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३उ.सू.२ अमायिनोऽनगारस्य विकुर्वणानिरूपणम् ७४७ वीर्यलच्या 'वेचियलद्धीए' वैक्रियलब्ध्या, 'ओहिनाणलद्धीए' अवधिज्ञानलब्ध्या च 'रायगि णगरं' राजगृहं नगरम् 'दाणारसिं नयरिं' चोराणसी नगरी च 'अंतरा' अन्तरा मध्ये 'एगं महं' एक महान्तम् 'जणवयवग्गं' जनपदवर्ग देशसमूहम् 'समोहए' समवहतः, 'समोडणित्ता' समवहत्य 'रायगि नयर' राजगृहं नगरम् 'वाणारसि नयरिं' वराणसीम् नगरीम् 'अंतरा' अन्तरा मध्ये 'एगं मह' एक महान्तम् 'जणवयवग्गं' जनपदवर्ग देशसमूहम् 'समोहए' समवहता, समोहणित्ता' समवहत्य — रायगिहं नयर ' राजगृहं नगरम् 'वाणारसिं नरि' वराणसीम नगरीम् 'अंतरा' अन्तरा मध्ये 'एगं मह' एकं महान्तम् 'जणवयबग्गं' जनपदवर्गम् 'जाणइ, पासइ ?, जानाति, पश्यति ? भगवानाह 'हंता, जापाइ, पास' हन्त, सत्यं जानाति, पश्यति । गौतमः पुनः पृच्छति-'से तात्मा अमायी सम्यग्दृष्टि अमगार 'वीरियलद्धीए' वीर्यलब्धिद्वारा 'वेउब्धियलहीए' वैकियलधिद्वारा एवं 'ओहिणाणलद्धीए अवधिज्ञानलन्धिद्वारा 'रायगिहं नयरं वाणारसी नयरिं च अंतरा' राजगृहनगर और वाणारसी नगरी के बीचमें 'एगं महं जणवयवर्ग' एक विशाल समूहको 'समोहए' विकुर्वणा करे और 'समोहणित्ता' विकुर्वणा करके 'रायगिहं नयरं' राजगृह नगरको 'वाणारसी नयरिं, वाणारसी नगरोको, और 'तं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं' उस विशाल जनपटसमूह को 'जाणइ पासई' जानता देखता है क्या उत्तरदेते हुए प्रभु कहते हैं कि 'हंता जाणइ पासई' हाँ, गौतम ! जानतो देखता है। इस पर पुनःगौतम प्रभु से पूछते है कि 'से भंते !' वह अमायी मातामा, सभायी, सभ्यEि वीरियलद्धीए, वेउन्चियलद्धीए, ओहिणाणलद्धीए' तनावी द्वारा, यास भने अधिज्ञानसDिE द्वारा 'रायगिहं नयरं वाणारसी नयरिं च अंतरा' 25 नगर भने पारसी नगरानी येन। 18 प्रदेशमा 'एगं महं जणवयवग्गं समोहए' मे४ महान - ५६ समूडनी विणा ४२ छ. समोहणिता, ये सनी विg ! ४२रीने 'रायगि नयरं' रायड नगरने, 'वाणारसी नयरि' पारसी नगरीने, भने 'तं अंतरा एगं महं जणवयवग्गं' से विशाल ५६ सपने 'जाणइ पासइ' શું તે જાણું દેખી શકે છે? उत्तर--हंता, जाणइ पासई' 8, गौतम ! त भर ते Met U અને દેખી શકે છે.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy