SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 963
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.६२.२ अमायिनोऽनगारस्य विकुर्वणानिरूपणम् ७३७ वाराणस्यां नगर्या रूपाणि जानाति, पश्यति ? हन्त जानाति, पश्यति, स भदन्त ! किं तथाभावं जानाति, पश्यति ? अन्यथाभावं जानाति, पश्यति ? नो अन्यथामावं जानाति, पश्यति, तत् केनार्थेन भदन्त ? एवम् उच्यते ? (वेउविडलद्धीए) वैक्रियलन्धिद्वारा, (ओहिणाणलद्धीए) अवधिज्ञानलब्धिद्वारा (रायगिहं नयरं समोहए) राजगृह नगरकी विकुर्वणाकी-अर्थात् राजगृह नगरकी अपनी विक्रियाद्वारा उत्पत्तिकी, ती (समोहणित्ता) उत्पत्ति करके (वाणारसीए नयरीए स्वाइं जाणइ पासइ) क्या वह वाणारसी नगरीमें रहा हुआ होने पर भी राजगृह नगर संबंधीरूपो को जानता देखता है ? (हंता, जाणइ पासइ) हां गौतम ! वाणारसी नगरी में स्थित हुआ भी वह अमायी भावितात्मा सम्यग्दृष्टि अनगार विकुर्वित किये गये राजगृह नगरके विकुर्वित मनुष्यादिरूपोंको जानता देखता है। (से भंते ! किं तहाभावं जाणइ, पासइ अन्नहाभाव जाणइ, पासइ ? हे भदन्त ! क्या वह उनरूपों को यथार्थरूप से जानता देखता है, कि अन्यथाभावसे-अयथार्थरूप से जानता देखता है ? (गोयमा ! तहाभावं जाणइ, पासइ, णो अन्नहाभावं जाणइ पासइ) हे गौतम ! वह तथाभावसे जानता देखता है । अन्यथाभावसे जानता देखता नहीं है । (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ) हे भदन्त ! सभ्यष्टि , माया, मावितामा PALY॥रे (वीरियलद्धीए) वायद ! (वेउवियलद्धीए) वैश्यिय द्वारा, (ओहिणाणलद्धीए) गने अवधिज्ञानसधि द्वारा, (रायगिहं नयरं समोहए) २२२४ नगरनी वि शभेटले यशतिदास २४ नगरनी श्यना ४३. ( समोहणित्ता) मा शत शY नगरनी विए। शन (वाणारसीए नयरीए रूवाई जाणइ पासइ?) वारसी नगरीमा हाने શું તે વિકુર્વિત રાગૃહ નગરનાં મનુષ્યાદિ વિકૃતિ રૂપને જાણી શકે છે, દેખી શકે છે? (हंता, जाणइ पासइ) , गौतम ! वायरसी नगरीमा २९सो ते सभायी, सभ्यદૃષ્ટિભાવિતાત્મા અણગાર વિકુર્વિત રાજગુડ નગરનાં વૈક્રિય રૂપને [મનુષ્યાદિ રૂપને] જાણે શકે છે–દેખી શકે છે. (से भंते ! किं तहाभाव जाणइ पासइ, अन्नहाभावं जाणइ पासई ?) હે ભદન્ત! શું તે અણગાર તે રૂપને યથાર્થરૂપે જાણે દેખે છે, કે અયથાર્થરૂપે જાણે हेछ ? (गोयमा !) गौतम ! (तहाभावं जाणइ, पासइ, णो अण्णहा. भावं जाणइ पासइ) मागा२ ३ाने यथार्थ ३२ नये हे छे-अयथार्थ३थे જાણતો દેખાતો નથી.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy