SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 952
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२८ , भगवतीमत्र, समवहतो विकृर्वितः, 'समोडणित्ता' समबहत्य, विकुर्वित्वाच 'वाणारसीए नयरीए' वाराणस्यां नगर्या स्थितः 'स्वाई राजगृहगत रूपाणि 'जाणामि पासामि' जानामि पश्यामि इत्येवं 'से से दंसणे' तत् वस्य अनगारस्य दर्शने 'विमासे भव:' व्यत्यासो विपर्ययो भवति, अन्यदीयरूपाणाम् अन्यदीयतया विकल्पनाव शानात् अन्ते उपसंहरति-'स तेणढणं' हे गौतम । तत् तेनान 'मावपासई' यावद-पश्यति, यावत्करणा-'नो तथामावं जानाति, पश्यति, अपि तु अन्यथाभावं जानाति पश्यति' इति संग्रायम् । गीतमः पुनः पृच्छति'अणगारेणं भंते !' इत्यादि । हे भदन्त ! अनगारः खलु 'भाविअप्पा'" भावितात्मा 'माई मिच्छादिट्ठी' मायी मिथ्याष्टिः 'जाव-रायगिहे नयरे' यावत-राजगृहे नगरे 'समोहए' समवहतः 'समोहणित्ता' समवहत्य 'वाणानगरमें विकृणा की है। 'समोहणित्ता' विकुणा करके 'वाणारसीए नयरीए रूचाई जाणामि पासामि' में चाणारसी नगरीमें स्थित हुआ राजगृह नगर संबंधी रूपोंको जान रहा हूं और देख रहा हूँ । 'से' इसकारण से उसके दसणे दर्शन-देखने में 'विवच्चासे भवह' विपर्यास भाव-विपरीतता होती है। कारण कि अन्यसंबंधीरूपोंको अन्यके संबंधीरूपसे उसने जाना है। 'से तेणटेणं जाव पासई इस कारण से मैंने ऐसा कहा है कि यावत् वह अन्यथाभावसे जानता है और देखता है। यहां यावत् पदसे 'नो तथाभावं जानाति पश्यति 'अपि तु 'अन्यथाभा जानाति पश्यति' इन पदोका संग्रह हुआ है। अब गौतम पुनः प्रभुसे पूछते हैं कि 'अणगारेणं भंते ! भावियप्पा मायी मिच्छदिट्टी' हे भदन्त ! भावितात्मा मायी मिथ्यादृष्टि अनगार 'जाव रायगिहे नयरे समोहए' यावत् राजगृह नगरमें विकुर्वणा समोहणिता' '४शन ' वाणारसीए नयरीए रूबाई जाणामि पासामि हुँ पासी नगरीमा ४i Roi RIP नाना पाने tell रखी छु. मन भी रयो छु. 'से' ते को 'से दसणे तेना शनमा मनाम 'विवशासे भवई' विपर्यासमाव-विपरीतता हाय ,छ. २३ मेनपान भीजन पोतरी तेणे या भने भ्या डाय छे 'से तेणद्वेणं जाव पास ते २२ એ એવું કહ્યું છે કે નચાવત) તે રૂપેને તે અન્યથાભાવે જાણે છે અને દેખે છે.. मडीयावत्' ५४थी 'नो तथाभावं जानाति पश्यति' ५२-तु · 'अन्यथाभावं जानाति पश्यति' मा महान। सड या छ. -- अणगारेणं भंते ! भावियप्पा मायी मिच्छविडीम ! लावितात्मा भिय्याष्टि भागार 'जाव रायगिहे नयरे समोइए' यावत् राAS
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy