SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 940
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१८ भगवतीस भवइ एस खलु वाणारसी नयरी एस खलु रोयगिहे नयरे एस खलु अंतरा एगे महं जणत्रयवग्गे, नो खलु एस महं वीरियली, वेवियलद्वी, विभंगणाण लद्धी, इड्ढी ! जुत्ती; जसे वले; वीरिए; पुरिसक्कारपरक्कमे लहे; पत्ते; अभिसमण्णागए; से से दस विवञ्चासे भवइ; से तेण ेणं जाव - पास ॥ सू०१ ॥ छाया - अनगारः खल भदन्त ! भावितात्मा मायी मिथ्यादृष्टिः वीर्यलब्ध्या वैक्रियलब्ध्या, विभङ्गज्ञानलध्या, वाराणसीं नगरों समवहतः समत्रहत्य राजगृहे नगरे रूपाणि जानाति, पश्यति ? हन्त, जानाति, पश्यति, स भदन्त ! किं तथाभावं जानाति, पश्यति, अन्यथाभावं जानाति, पश्यति ? मिथ्यादृष्टि अनगारकी विशेपविकुर्वणाकीवक्तव्यता'अणगारे णं भंते ! भावियप्पा' इत्यादि । सूत्रार्थ - ( अणगारे णं भंते । भावियप्पा मायी मिच्छादिट्ठी, वीरि-यलद्वीप, बेडब्बियलद्वीप, विभंगणाणलद्वीए वाणारमीं नगरि समो हुए) हे भदन्त ! मिथ्यादृष्टि, मायी-कपायवाला, भावितात्मा अनगार वीर्यलब्धिसे, चैक्रियलब्धिसे एवं विभंगज्ञानलब्धिसे वाणारसी नगरीकी विकुर्वणा करसकता है क्या और (समोहणित्ता रायगिहे नयरे वाई जाणइ पासइ) विकुर्वणा करके राजगृह नगर में रहा हुआ वह वाणासी नगरीके रूपोंको जानता है एवं देखता है क्या ? (हंता जाणइ, पास) हां गौतम ! जानता है और देखता है । ( से भंते 1 किं. ताभाव जाणइ, पासइअ महाभावं जाणइ पासइ ?) हे भदन्त ! जो भिध्याમિથ્યાદૃષ્ટિ અણુગારની વિશેષ વિકણાનું નિરૂપણ—— 'अणगारेणं भंते ! भावियप्पा' छत्याहि--- सूत्रार्थ - ( अणगारेण भंते! भावियप्पा मायी मिच्छादिट्ठी, वीरियलदीए, वेन्नियलद्धीए, विभंगणाणलडीए वाणारसीं नगरि समोहए ) હે ભદ્દન્ત ! મિથ્યાવૃષ્ટિ, માથી કષાયુક્ત, ભાવિતાત્મા અણુગાર વીય લબ્ધિથી, વૈક્રિય લબ્ધિથી, અને વિભાગજ્ઞાન લબ્ધિથી શુ વાણારસી નગરીની વિકણા કરી શકે છે અને (समोणित्ता रायगि नयरे रुवाई जाणइ पासइ ? ) આ પ્રકારની વિધ્રુણા. કરીને, રાજગૃહ નગરમાં રહેલા તે, શુ વાણારસી નગરીનાં રૂપાને જાણી શકે છે અને हेभी छ ? (हंता, जागई पासइ) डा. गौतम ! ते 'शश छे भने हेली
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy