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________________ ७१२ भगवतील , " गौतमः पुनः पृच्छति - 'अमाईणं मंते !" इत्यादि । हे भदन्त ! अमावी खल कपायरहितोऽनगारः ' तस्स ठाणस्स ' तस्य स्थानस्य अभियोगभावना करणलक्षणस्य यदि 'आलोहपडियांते' आलोचितमतिक्रान्तः कृतपश्चात्तापाद्यालोचनमतिक्रमणः 'कालं करेइ' कालं करोति तदा 'कहि उववज्जह' कुत्र उपपद्यते ? भगवानाह ' गोयमा ! हे गौतम 1 अण्णरयेस ' अन्यतरेषु अन्यतमेषु इत्यथः ' अणाभियोगिएसु ' अनाभियोगिकेषु 'देवलोएस' देवलोकेषु अच्युतान्तेषु 'देवनाए उबवज्ज' देवतया उपपद्यते, अर्थात् अभियोगहोती हैं । यह सब भगवतीमुत्रके पहले शतक के दूसरे उद्देशक के तेरहवें सूत्रमें वर्णित हुआ है । अब गौतम प्रभुसे पुनः पूछते हैं'अमाईणं भंते! हे भदन्त ! जो कपायरहित अमायी अनगार होता है वह 'तस्स ठाणस्स' उस अभियोग भावना करनेरूप स्थानको 'आलोइयपडिते' पश्चात्ताप करनेरूप आलोचना करता है, प्रतिक्रमण करता है। इस तरह अभियोग भावनाजन्य दोषोंसे विशुद्ध होकर वह 'कालं करेइ' जय कालकरता है, तब 'कहि' कहां पर उत्पन्न होता है, इस गौतमके कृत प्रश्नका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम । अण्णयरेसु अणाभियोगिएसु देवलोएसु' अन्यतम किसीएक अनाभियोगिक देवलोकमें अच्युततक के स्वर्ग में 'देवताए' देवकी पर्याय से 'उववज्जर' उत्पन्न होता है । तात्पर्य कहनेका यह है कि ऐसा अमायी अनगार प्रथम कल्पसे लेकर अच्युततक के देवચાકર જેવાં હાય છે. ત્રુ અર્ધું મન ભગવતીસૂત્રના પહેલા શતકના બીજા ઉદ્દેશકના તેરમાં સૂત્રમાં કરવામાં આવ્યું છે. प्रश्न - 'अमाईणं भंते !' हे महन्त ! उषाय रहित अभायी अजुगार होय छे" ' 'ते सलियोग भावना तस्स ठाणस्स કરવા રૂપ સ્થાનની ( પ્રવૃત્તિની } ( आलोय पडिकते) आसथिना ४२ हे. तेनुं प्रति भय ४२ हे. उद्या होषना गुरु સમીપ પ્રકાશિત કરી તેના પસ્તાવા કરવા તેનું નામ આવેચના છે. લાગેલ દોષથી નિવૃત્ત થવું તેને પ્રતિક્રમણુ કહે છે. આ રીતે અભિયાગ ભાવનાજન્ય દોષોથી વિશુદ્ધ थर्धने 'कालं करेइ' ले ते अ४२ छे, तो 'कहि उववज्जइ' यां उत्पन्न थाय छे ? उत्त२. -~-~{ अण्णरयेसु अणाभियोगिएस देवलोएस अन्यतभ-४ मनालागि देवसोऽभां-मस्त पर्यन्तना देवां 'देवता उववज्ज' - पर्याये उत्पन्न थाय छे. દેવની કહેવાનું તાત્પય એ છે કે એવા અમાથી અણુગાર પહેલા દેવલેાકથી લઈને
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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