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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श ३ उ १ अमिभूर्तिप्रति भगवदुत्तर १९ शरसख्याकांना गुरुस्थानीयसहायकदेवाना स्वाधिपत्यपूर्वक भोगान् भुञ्जानो विहरतीतिभावः । एतेन तस्य चमरस्य अद्भुत समृद्धिसौरव्य सौभाग्यादिशा लित्व सूचितम् । अत्र यावच्छात् चमरस्याऽन्यदपि वैशिष्टय प्रतिपादर्यात, तयाहि "चउण्ड लोकपालाण, पचण्ड अग्गमहिंसीण, सपरिवाराण, विण्ड परिसाण, सचण्ड अणियाण, सचण्ड भणियाहिवईण, चउण्ड घउसट्टीण, आयरक्खदेवसाहस्सीण, अन्नेसिंच वष्टुण, चमरचचारायहाणि वत्यन्त्राणं देवाण य, देवीण य आहेवच्च, पोरेवन्च, सामित्त भट्टित्त, आणा - ईसर - सेणात्रच्च कारेमाणे, पाछेमाणे महयाहयन - गीअ-वाइय-तती-तल-ताल-तुडिय - घणमुइग पप्प वाइयरवेण दिव्वाड भोगमोगाइ भुजेमाणे "चि । इन्द्र तुल्य समृद्धिशाली देवों का 'सायत्तीसाए' तेतीस 'तायत्तीसगाण' गुरुस्थानीय सहायकदेवोंका 'जाव विहरह' स्वामित्वं भोगता हुआ रहता है । अर्थात् इन सबका मालिक बना हुआ वह इन्छानुसार पांचों इन्द्रियों के भोगों को भोगता रहता है । इस कथनसे सूत्रकार ने · मरको अद्भुत समृद्धिशाली एव सुख सौभाग्यशाली सूचित किया है । 'जाव विहरह' में जो यावत् पद आया है उससे सूत्रकार ने चमर में अन्य वातों का वैशिष्टय प्रतिपादन किया है, जो इस प्रकारसे है 'चह लोकपालाण पंचन्ह अग्गमहिसीण, सपरिवाराण, तिन्ह परिसार्ण, ससह अणियाण, सतह अणियाहिवईण, चउण्हाउसद्वीणं आयरक्स्वदेव साहस्सीण, अण्णेसिं च वहण चमर चचारायहाणिवस्त्राण देवाण य, देवीणं य आहेबच्च पोरेवच्य सामित्त भट्टित - ईसर - सेणायच कारेमाणे, पालेमाणे मह्याग्यनह-गीय-वाइय"वायचीसाए वायत्तीसगाण " तेत्रीस गुरुस्थानीय सहाय देवानुं विरह" स्वामित्व लोगवत होय छे भने ते पोतानी छानुसार पाये इन्द्रियोना સુખા ભાગવે છે આા કથન દ્વારા સૂત્રકારે ચમરને અદ્ભુત સમૃદ્ધિથી સુકત અને સુખ सौभाग्य शाजी मतान्यो "जाव विहर" माने 'मात्र' (पर्यन्त) यह मान्य છે. એ દ્વારા ચમરમાં રહેલી ખીજી વિશિષ્ટતાએનું સુત્રકારે પ્રતિપાદન કર્યું છે તે વિશિષ્ટતાએ નીચે પ્રમાણે છે आणा " जात्र "चन्ह लोकपालाण, पचण्ड अम्गमहिसीण, सपरिवाराण, तिन्ह परिसाण, सखण्ड भणिर्याणं, सतह अणियाहिवईण, चउण्ड चउसद्वीण मायरक्स्व देवसाट - स्सी, अण्णेसि च पण चमरचचारायणणिवत्यन्त्राण देवाण य, देवीण य आहेच पोरेबुच्च सामिच मट्टित, माणा ईसर - सेणावच्च फारेमाणे पाछेमाणे
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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