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________________ - - - ७१० मगवतीय सः 'अण्णयरेमु' अन्यतरेषु अन्यतमेषु इत्यर्थः 'आमियोगिएसु' आभियोगिकेषु 'देवलोयेमु' देवलोकैपु, अमरकुमारादि-अच्युतान्तेषु देवलोकेषु 'देवताए' देवतया 'उवयजई' उपपद्यते, तथाच आमियोगिकदेवा अच्युतान्तदेवलोके उत्पधन्ते इत्याशयेन 'अन्यतरेषु' इत्युक्तम् । एवञ्च विधादिलब्ध्युपजीवी भावितात्मा अनगारः अभियोगमावनां कुर्वन आभियोगिकदेवेषु जायते तदुक्तम्-'मंता-जोगं फाउं भूइकम्मं तु जे पउंजेति, साय-रस-इड्ढिहेउं अभियोग भावणं कुणई' मन्त्रायोगं कला भूतिकर्म तु यः प्रयुयते, शात-रस-दिहेतुम् आमियोगिकी भावनां करोति' अर्थात् मुख-स्वाद-समृद्धिमाप्त्यर्थम् मन्त्रसाधनां. विशिष्टीपधिसेवनं, भूतिकर्म च मयुञ्जानः पुरुषः आमियोगिकी भावनां करोति उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि-गायमा' हे गौतम ! अण्णयरेसु आभियोगिएप्सु देवलोगेसु देवताए उववजई' यह मायी अनगार अन्यतम आभियोगिक देवलोफोंमें असुरकुमार आदिसे लेकर अच्यु. ततक के देवलोकों में से किसी एक देवलोकामें देवरूपसे उत्पन्न होता है। आभियोगिक देव अच्युततक के देवलोकमें उत्पन्न होते है-इसी अभिप्राय से यहां 'अण्णयरेसु' ऐसा पद कहा गया है। विद्या आदि ' लब्धिसे उपजीवी यह भावितात्मा अनगार अभियोग भावनाको करता हुआ आभियोगिक देवोंमें उत्पन्न हो जाता है । कहा भी है__ 'मंता जोगं काउं भूहकम्मं तु जे पउंजेति । . सायरस इढिहे अभियोगं भावणं कुणह ॥ इस गाथा का भावार्थ इस प्रकारसे है कि जो पुरुष सुखकी, स्वाद की और समृद्धि की प्राप्ति के लिये मंत्रकी साधनाको, विशिष्ट प्रकार प्रश्न मा प्रभारी २ भाषेछ 'गोयमा ! गौतम ! ' अण्णयरेसु आभि ओगिएस देवलोगेसु देवत्ताए उववज्जइ' माथी मगर अन्यतम मानिશેઠ, દેવલોકમાંઅસુરકુમારથી લઈને અચુત પર્યંતના દેવલોકમાંના કેઈપણ એક દેવલોકમાં દેવરૂપે ઉત્પન્ન થાય છે. આભિગિક દેવ અચુત પર્યન્તના દેવકમાં पत्र थार छ, से वा भाटे मडी 'अण्णयरेसु' पनि प्रयोग ध्यो छे. विद्या આદિ લબ્ધિથી ઉપજાવી તે. ભાવિતાત્મા અણુગાર અભિગમાં પ્રવૃત્ત થવાને કારણે આભિગિક દેવમાં ઉત્પન્ન થાય છે કહ્યું પણ છે– मंता जोगं काउं भूइकम्मं तुजे पतिः । ..:.; '... सायरसइड्ढिहेउ अभियोगं भावणं कुणइनी..... આ ગાથાનો ભાવાર્થ નીચે પ્રમાણે છે—જે પુરુષ સુખની વાહનો અને
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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