SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 917
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३उ.५९.२ अभियोगिकस्याभियौगिकस्य निरूपणम् ७.५ इति सम्पूर्णप्रश्नालापकः, भगवानाह ‘एवं वाहिरए पोग्गले' एवम् उक्तरीत्या स बाह्यान् पुद्गलान् 'परिआइत्ता' पर्यादाय 'पभू' प्रमुः समर्थः उक्ततत्तद्रूपमभियोक्तुमित्याशयः, गौतमः पुनः पृच्छवि-'अणगारे णं भंते !' इत्यादि। हे भदन्त ! अनगारः खलु 'भावियप्पा' भावितात्मा 'एक मह' एक महत् 'आसवं वा,' अश्वरूपं वा 'अभिमुंजित्ता' अभियुज्य तद्रूपानुप्रवेशेन व्यापार्य 'अणेगाई जोअयाई' अनेकानि योजनानि 'गमित्तए' गन्तुम् 'पद्म' प्रभुः समर्थः किम् ? भगवानाह 'हंता, पभू' हन्त प्रभुः, हे गौतम ! त्वदुक्तरीत्या गन्तुं स समर्थः, गौतमः पुनः पृच्छति-‘से भंते !' इत्यादि । हे भदन्त! स भावितात्मा अनगारः 'कि आयड्डीए गच्छइ' किम् आत्मदर्या गच्छति, है- इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि 'एवं वाहिरए पोग्गले' उक्तरीति से वह भावितात्मा अनगर बाह्यपुदगलोंको 'परियाइत्ता' ग्रहण करके 'पभू' उक्त उन२ रूपोंकी अभियोजना करने के लिये समर्थ है। गौतमस्वामी प्रभुसे पुनः प्रश्न करते हैं 'अणगारे णं भंते! भावियप्पा' हे भदन्त ! भावितात्मा अनगार 'एगं महं' एक महान् 'आसरुव वा' घोडेके रूपकी 'अभिजुजित्ता' अभियोजना करके 'अणेगाई' अनेक 'योजनों तक गमित्तए पभू' जाने के लिये ममर्थ है क्या इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि-'हंता पभू' हां गौतम वह समर्थ है। अर्थात् जैसा तुमने प्रश्न किया है उसके अनुसार वह अनेक योजनों तक जाने के लिये शक्तिशाली है। गौतमपुन: इसी विपयको लेकर प्रभु से पूछते हैं कि-से भंते ! किं आयडूढीए गच्छई' हे भदन्त ! वह भावितात्मा अनगार अपनी निजकी ऋद्धि से. Gar-एवं वाहिरए पोग्गले' गौतम ! माय पुरसान परियाइत्ता ગ્રહણ કરીને “ ઉપરોકત રૂપની અભિલેજના કરવાને તે સમર્થ છે. प्रश्न-'अणगारे णं भंते भावियप्पा' हे महन्त ! भावितामा म॥२, 'एगं महं आसरूवं वा' महान मना३५नी 'अभिजंजित्ता' मलियाना ४शन 'अणेगाई जोयणाई' भने योनाना भातर सुधा 'गमित्तए पभू' पाने શું સમથે છે ? St२-'ता, पभ' गौतम 1 1 समर्थ छे. भेट व ३५२ अमिચેજિત કરીને તે અનેક જનાના અંતરે જવાને સમર્થ છે. ___ - ‘से भंते ! आयडूहीए. गच्छइ' 3 महन्त ! मश्वना३पनी मलियाना
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy