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________________ ૬૮૮ - . भगवती गोयमा ! उप्पएज्जा' हन्त, गोतम ! उत्पतेत् , हे गोतम ! अनगारः खलु भावितात्मा विकुर्वणया चैक्रियाहस्तधृतेकपास्थितध्वजयुक्तपताकाधारि पुरुषाकारस्वस्वरूपेणोर्ध्वमुत्पतितुं समर्थः गौतमः पुनः पृच्छति-'अणगारेणं भंते।' इत्यादि' हे भदन्त ! अनगारः खलु 'भावियप्पा' भावि तात्मा 'केवइयाई फियन्ति कियत्संख्यकानि 'एगओ पड़ागा हस्थकिचगयाई एकतः पताकाहस्तकृत्यगतानि एकपावलम्बिध्वजयुक्तपताका. धारिपुमपाकाराणि 'ख्वाई' रूपाणि 'विउवित्तए पभू विकुक्तुिं विकुर्वण या निप्पादयितुं प्रभुः समर्यः ? भगवानाह---'एवंचे जाव' एवं चैव यावत् पूर्वोक्तवदेव सर्व बोध्यम् । विकुबिसु वा व्यकुर्वीद वा, विकुन्धति वा विकुर्वति वा उड सकता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते है कि-'हता उप्पएज्जा' हां उड सकता है अर्थात् हे गौतम ! भावितात्मा अनगार अपनी विकुर्वणा शक्तिसे निप्पन्न किये गये हाथो में एक पार्श्व में स्थित ध्वजावाली पताका को धारण करनेवाले पुरुष के आकार में बने हुए अपने वैक्रिय स्वरूपसे आकाशमें ऊँचे उठ सकता है। गौत्तम पुनः प्रभुसे पूछते हैं-अणगारे णं भंते !' हे भदन्त ! अनगार जो 'भावियप्पे' भावितात्मा है 'केवइयाई वह कितने ऐसे 'स्वाई' रूपों को 'एगओ पडागाहथकिच्चगया कि जिन्होंने एक पार्श्व में ध्वजयुक्त पताका को धारण करनेवाले, पुरुषों के जैसा अपना विक्रियाजन्य आकार बनाया है 'विउवित्तए पभू' बनाने के लिये समर्थ हो सकता है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते है कि हे गौतम ! 'एवं चेव जाव' इस विषयमें उत्तररूप कथन पहिले की હાથમાં ધારણ કરી હોય એવા પુરુષ આકારના પોતાના લેયરથી * ૦ અણગાર આકાશમાં ઊંચે ઉડી શકે છે? उत्तर-हता, उप्पएज्जा' गौतम ! (भावितात्मा मार से प्रार्नु પિતાનું વૈક્રિયરૂપ બનાવીને આકાશમાં ઊંચે ઉડી શકે છે. प्रश्न-'अणगारेणं भंते ! भावियप्पे केवइयाई रुवाई एगोपडागाहत्यकिचगयाई विउवित्तए पभू? 3 महन्त ! rयुत पतधार श હાય એવાં કેટલાં વક્રિય પુરુષ રૂપનું, ભાવિતાત્મા અણગાર તેની ક્રિય શકિતથી નિર્માણ કરી શકે છે? उत्तर-पवं वेव' 1 प्रभने उत्तर पार पडेल नन तर प्रभाव: સમજ કયાં સુધી તે ઉ પાઠ પ્રહણ કરે, તે સમજાવવા માટે કહ્યું છે કે, पया परम
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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