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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श॰३ उ.५ सू. १ विकुर्वणाविशेषवक्तव्यतानिरूपणम् ६८५ इत्यादि । हे भदन्त तद्यथा नाम 'केपुरिसे' कोऽपि पुरुष: 'असि - चम्मपाय" असिचर्मपात्रं तत्र असि: खङ्गः चर्मपात्रम् ' ढाल - इति भाषायां प्रसिद्धम् ' ते 'गाय' गृहीत्वा 'गच्छेजा' गच्छेत 'एवामेव' एवमेव 'अणगारे वि भावियप्पा' अनगारोऽपि भावितात्मा 'असि चम्मपायहत्थ - किच्च गएणं' असि - चर्मपात्रeed कृत्यगतेन असि चर्मपात्रश्चति असिचर्मपात्र हस्तेकृत्वा गतः असिचर्मपात्रहस्ते कल्यगतस्तेन क्रियक्रियया निष्पादित क्रियखकोशादिधारि पुरुषाकारेण 'अप्पाणेणं' आत्मना स्वस्वरूपेण 'उट' ऊर्ध्वम् ' वेहासं' विहायसि आकाशे किम् 'उप्पड़ज्जा' उत्पतेत् ? उड्डीयेत ? भगवानाह 'हंता, उप्पइज्जा' हन्त, उत्पतेत्, अर्थात् हे गौतम । स भावितात्मा वैक्रियखङ्गादि धारिपुरुपकारः सन् आकाशे अवश्यमुत्पतितुं समर्थो भवति । गौतमः पुनः इन सबरूपोका ग्रहण किया गया है । अब गौतम प्रभु से पूछते हैं कि-' से जहानामए' हे भदन्त । जैसे केइ पुरिसे' कोई पुरुष, 'असिचम्मपाय' असि - तलवार एवं चर्मपात्र - ढालको 'गहीय' लेकर के 'गच्छेना' चलता है 'एवामेव' इसी तरहसे 'अणगारे वि भावियप्पा भावितात्मा अनगार भी 'असीचम्मपायहत्थ - किच्चगएणं अप्पाणेणं असि और चर्मपात्र को हाथ में करके गये हुए अर्थात् - वैक्रियक्रिया से निष्पादित किये गये विक्रियारूप खङ्ग कोश आदि को धारण करने वाले पुरुष के आकार हुए अपने निजस्वरूपसे 'उड्ढ वेहायसं' ऊँचे आकाश में क्या 'उप्पइज्जा' उड़ सकता है ? उस प्रश्नका उत्तर देते हुए प्रभु गौतमसे कहते हैं कि- 'हंता उप्पइज्जा' हां गौतम ! उड़ सकता है अर्थात् भावितात्मा अनगार वैक्रियखङ्गधारी पुरुष के आकार में होकर आकाश में अवश्य उड़ सकता है । गौतमस्वामी प्रभु से , प्रश्न - ' से जहानामए के पुरिसे' हे लहन्त ! वी शते । पुरुष 'असिचम्म पायें' तयार भने अर्भपात्र (दास) ने 'गहाय' सहने 'गच्छेज्जा ' शाखे छे, 'एवामेव' मेन प्रमाणे 'अणगारे वि भावियप्पा असिचम्मपायहत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उद्धं वेहायसं उप्पड़ज्जा ?' पोतानी वैडिय शक्तिथी निर्माण કરેલા તલવાર અને ઢાલન ધારણ કરનારા વૈક્રિય પુરુષ રૂપનું નિર્માણ કરીને શું ભાવિતાત્મા અણુગાર આકાશમાં ઊંચે ઉડી શકવાને સમર્થ છે? ગૌતમ સ્વામીના આ अननो उत्तर आपला भंडावीर प्रभु से छे है-'हंता, उप्पइज्जा ' हे गौतम ! ભાવિતાત્મા અણુગાર વૈક્રિય ખડગ આદિ ધારી પુરુષરૂપે આકાશમાં અવશ્ય ઉડી શકે છે.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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