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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.३ उ.५ मृ.१ विकुर्वणाविशेपवक्तव्यतानिरूपणम् ६७५ द्विधा पताक मपि, तद् यथा नाम कोऽपि पुरुषः एकतो यज्ञोपवीतं कृत्वा गच्छेत, एवमेव अनगारो भावितात्मा, एकतो यज्ञोपवीतकृत्यगतेन आत्मना ऊर्ध्व भांवितात्मा अनगार मि एक पार्श्व में स्थित ध्वजसे युक्त पताकाको धारण करनेवाले पुरुष जैसे आकारमें बने हुए अपने वैक्रियस्वरूप से ऊँचे आकाशमें उड सकता है क्या ? (हंता; गोयमा उप्पएन्जा) हे गौतम ! हां भावितात्मा अनगार इस प्रकार के आकार में होकर ऊँचे आकाश में उड़ सकता है। (अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवहयाई पभू एगओ पडागा हत्थकिचगयाई स्वाइं विकुम्बित्तए ?) हे भदन्त ! भावितात्मा अनगार एक पाश्चमें स्थित ध्वजयुक्त पताका को धारण करनेवाले पुरुप जैसे आकारमें बने हुए कितने ऐसे चैक्रिय रूपोंकी विकुर्वणा कर सकता है ? (एवं चेव जाव विकुविसु वा, विकुवंति वा विकुन्विस्संति वा-एवं दुहओ पडागं वि) हे गौतम ! इस विषय में उत्तर पहिले कहे गये कथनके अनुसार ही जानना चाहिये । परन्तु भावितात्मा अनगार ने भूतकाल में न कभि ऐसे रूपोंकी विकुर्वणा की है, न वह वर्तमान में करता है और न वह भविष्यमें भी ऐसे रूपोंकी विकुर्वणा करेगा ही यहां तो यदि वह करना चाहे तो ऐसे रूपोंको करनेकी उसमें शक्ति है यही बात दिखलाई गई है। इसी तरह से दोनों तरफ ध्वजा से युक्त पताका के विषयमें भि जानना चाहिये । (से जहानामए केइ पुरिसे एगओ उप्पएज्जा ?) वी शते भावितामा समान ५ शुडायमा ४ साथैनी यताt ધારણ કરી હોય એવા વૈશ્યિ પુરુષને રૂપે આકાશમાં ઉંચે ઉડી શકવાને શું સમર્થ છે ? (हंता, गोयमा उप्पएज्जा) हे गौतम ! सावितामा अगार से वै४ि५३५ धारण शन मामा 61 पाने समर्थ छ. (अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू एगओ पडागा हत्यकिच्चगयाई स्वाई विकुवित्तए ?) 3 महन्त ! હાથમાં ધ્વજાયુકત પતાકા ધારણ કરીને ઉડનારા કેટલાં વૈક્રિય પુરુષ આકારની विभु४२वाने भावितामा मगर समर्थ छे? एवं चेव जाब विकुब्बिसु वा, विकुचंति वा, विकुचिस्संति वा-एवं दुहओ पडागं वि) गौतम तेन। उत्तर પણ આગળના પ્રશ્નના ઉત્તર પ્રમાણે જ સમજ. પરંતુ ભાવિતાત્મા અણગારે ભૂતકાળમાં કદી પણ એવી વિક્ર્વણ કરી નથી, વર્તમાનમાં કરતા નથી અને ભવિષ્યમાં પણ કરશે નહીં. તેમની વિમુર્વણુ શકિત કેટલી છે, એ બતાવવાને માટે જ આ વાત કહી છે. એ જ પ્રમાણે બને પડખે દવાઓથી યુકત પતાકાએધારી
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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