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________________ - प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.५ सु. १ विकुर्वणाविशेपवक्तव्यतानिरूपणम् ६७३ यावत्-स्यन्दमानिका, स यथा नाम कोऽपि पुरुषोऽसि-चर्मपात्रं गृहीत्वा गच्छेत् एवमेव अनगारोऽपि भावितात्मा एकतः पताका हस्ते कृत्य गतेन आत्मना ऊर्च विहायः उत्पतेत् ? इन्त, उत्पतेत, अनगारः खलु भदन्त ! भावितात्मा कियन्ति प्रभुः असिचर्महस्ते कृत्य गतानि रूपाणि विकुर्वितुम् ? गौतम ! तद्यथा नाम युवति युवा हस्तेन हस्ते गृह्णीयात्, तचैत्र यावत्-व्यकुर्विद् वा, विकुर्वति वा, विकुर्विष्यति वा, तद् यथा नाम कोऽपि पुरुपः एकतः पताकां कृत्वा गच्छेत्, संदमाणिया) हे गौतम ! यावत् भावितात्मा अनगार का यह इस प्रकार का केवल विषय कहा है, आजतक भावितात्मा अनगारने न कभी ऐसा किया है, न वह करता है और न वह आगे भी ऐसा करेगा-यह तो केवल उसकी शक्तिमात्र का प्रदर्शन किया है। इसी तरह से यावत् स्यन्दमानिका तक के स्पों तक भी जानना चाहिये। (से जहानामए केइ पुरिसे असि-चम्मपायं गहाय गच्छेजा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा असिचम्मपायहत्य-किच्चगएणं अप्पाणेणं उडूढं वेहाय उप्पइजा) हे भदन्त ! जैसे कोई एक पुरुप तलवार और चर्मपात्र ढाल को लेकर चलता है, इसी तरह भावितात्मा अनगार भी वैक्रिय तलवार और ढाल को धारण करने वाले मनुष्य की तरह होकर किसी भि कार्य के वश से स्थयं आकाश में ऊँचे उड सकता है क्या ? (हंता उप्पइज्जा) हे गौतम ! हां उड़ सकता है। (अणगारे णं भंते । भावियप्पा केवयाई पभू असि-चम्म हत्थ किच्च विउविमु वा, विउबिति वा, विउचिस्संति वा-एवं परिवाडीए णेयव्वं जाव सदमाणिया) हे गौतम! मावितात्मा असारनी विभुत शत्तिनु नि३५४ ४२वान માટે જ ઉપર્યુકત નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું છે. આજ સુધી ભાવિતાત્મા અણગારે એવી વિમુર્વણુ કદી કરી નથી, વર્તમાનકાળે એવી વિદુર્વણા કરતા પણ નથી, અને ભવિષ્યમાં એવી વિમુર્વણ કરશે પણ નહીં. આ તે માત્ર તેની શકિત બતાવવા માટે જ કહ્યું છે. સ્પેન્દમાનિકા પર્વતનાં રૂપના વિષયમાં પણ આ પ્રમાણે જ સમજવું. ( से जहानामए केइ पुरिसे असि-चम्मपायं गहाय गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा असिचम्मपायहत्य-किच्चगएणं अप्पाणेणं उडूढ़ वेहायं उप्पइज्जा) !ी शत पुरुष तपा२ अन (यम पात्र)ने धन ચાલે છે, એવી જ રીતે વિદિય ઢાળ અને તલવારને ધારણ કરીને કઈ પણ કાર્યો ४२वान निमित्त, भावितात्मा मसार शुये शभा १ (हता उप्पइज्जा) 3 गौतम! , ते 61 छ. (अणगारे णं भंते। भावियप्पा
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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