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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका. श. ३ उ.४ २.५ अणगारविकुर्वणानिरूपणम् ६५३ तस्य आराधना, अमायी तस्य स्थानस्य आलोचितमतिक्रान्तः कालं करोति, अस्ति तस्य आराधना, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ ५ ॥ पूर्वपकरणस्य देवक्रियापरिणामपर्यवसायितया तदधिकाराद् अनगाररूपद्रव्यदेवपरिणामसूत्राण्याह-'अणगारेणं भंते ! इत्यादि । गीतमः पृच्छति हे भदन्त ! अनगारः खलु 'भावियप्पा' भावितात्मा 'वाहिरए पोग्गले' बाह्यान् प्रतिक्रमण करता है-इस तरह वह अनालोचित अप्रतिक्रान्त होकर काल करता है। अतः (नत्थि तस्स आराहणा) उसके आराधना नहीं होती हैं (अमाई णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेइ, अस्थि तस्म आराहणा, सेवं भाते ! सेवं भते! ति) अमायी अप्रमत्त मनुप्य अपनी भूल भरी प्रवृत्ति की आलोचना करता है, उसका प्रतिक्रमण करता है। इस तरह वह आलोचना और प्रतिक्रमण करता है। इस तरह वह आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल करता है इसलिये उसके आराधना होती है । हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है वह ऐसा ही है-हे भदंत ! वह ऐसा ही हैं। इस प्रकार कहकर गौतम यावत् अपने स्थान पर बैठ गये ॥५० ७॥ पूर्वप्रकरणमें देव और लेश्यापरिणाम इनमें समाप्त हो चुका अतः इस के बाद आया हुआ यह प्रकरण भी उसी अधिकार के सम्बन्ध से वैमा ही है इस प्रकरण में भविष्य में देवकी पर्याय से उत्पन्न होने वाले द्रव्यदेव भावितात्मा अनगारों द्वारा किये गये पुद्गल परिणामो को प्रकट करने के लिये सूत्र कहे गये है-जो આવિલ પ્રવૃત્તિની આલેચના પણ કરતા નથી, અને તેનું પ્રતિક્રમણ પણ કરતા નથી. माश मासायन या विना तथा प्रतिभएY ४ा विना भरे छ, तेथी (नस्थि तस्स आराहणा) तेना द्वारा धर्मनी माराधना यती नथी पर विराधनtar थाय छे. (अमाई णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिकते कालं करेइ, अस्थि तस्स आराहणा) समायी-मप्रमत्त मनुष्य पातानी भूमरी प्रवृत्तिनी मातोयना ४२ छ અને તેનું પ્રતિક્રમણ પણ કરે છે. આ રીતે તે આલોચના અને પ્રતિક્રમણ કરીને કાલ કરે छ. तेथी तना दास भनी माराधना थाय छे. (सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) હે ભદન્ત ! આપની વાત તદ્દન સાચી છે. આપે આ વિષયનું જે પ્રતિપાદન કર્યું છે તે યથાર્થ છે. એમ કહીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને વંદણ નમસ્કાર કરીને તેમને સ્થાને બેસી ગયા. સૂ૦ ૫ છે પૂર્વ પ્રકરણમાં દેવ અને લેશ્યા પરિણામનું નિરૂપણ થઈ ગયું છે. આ પ્રકરણમાં ભવિષ્યમાં દેવની પર્યાએ ઉત્પન્ન થનાર દ્રવ્યદેવ ભાવિતાત્મા मा द्वारा ४२वामा भावसा पुल परिणामाने पट ४२वान भाटे 'अणगारेणं
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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