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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. ४ सू. ३ पारिणामिकवलाहकवक्तव्य तानिरूपणम् ६३३ बलाहकः वस्तुतः स्त्री न भवितुमर्हति एवं पुरिसेण, आसे, इत्थी' एवं तथैव पुरुपः, अश्त्रः, हस्ती स वलाहकः पुरुषः अश्त्रः, हस्ती न वर्तते इति विज्ञेयम्, पुनः गौतमः यानविषये विशेष पृच्छति 'भ्रूणं भंते !' इत्यादि । हे भगवन ! प्रभुः समर्थः खलु किम् 'बलाहए' बलाहकः मेघः' एगं महं' एकं महत् 'जाणरूवं' यानरूपं शकटरूप' 'परिणामेत्ता' परिणमय्य 'अणेगाई जोअणाई गमित्तए' अनेकानि योजनानि गन्तुम् ! 'जहा इत्थिरूवं' तहा भाणिअच्च" यथा स्त्रीरूपं तथा भणितव्यम्, तथाच 'पभ्रूणं भंते । चलाहए एवं महं जागरूवं परिणामेत्ता' इत्यादि 'ऊसिओदयं वा गच्छड़ पयओदयं वा गच्छर' इत्यन्तं स्त्रीरूपसूत्रसमानमेव यानमें कहते हैं कि गोयमा' हे गौतम । 'बलाहुए णं से, णो खलु सा हस्थी' बलाहक तो बलाहक हो है वह स्त्री नहीं है ' एवं ' इसी तरह वह 'पुरिसे ण आसे हत्थी' पुरुष भी नहीं है, घोडा भी नहीं है, हाथी भी नहीं है । अब गौतम यानके विषय में विशेष पूछते हैं कि 'पभूणं भंते ! बलाहए एगं महं जाणख्वं परिणामेत्ता अणेगाई जोयणाई गमितए' हे भदन्त ! मैघ एक विशाल यान शकटके रूपमें परिणत होकर क्या अनेक योजन तक जाने के लिये समर्थ है ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि- 'जहा इत्थिरूवं तहा भाणियव्वं - णवरं एगओ चकवालं पि गच्छह, दुहओ चक्कवालं वि गच्छ' हे गौतम ! जिस प्रकारका पाठ स्त्रीरूप सूत्रमें कहा गया है उसी के समान ही पाठ - कथन - यानरूप सूत्र में भी कहलेना चाहिये । और वह 'पभूणं भंते ! बलाहए एगं महं जाणरुवं परिणामेत्ता उत्तर- 4 गोयमा , " हे गौतम! 'बलाइएणं से, णो खलु सा इत्थी ' मेध स्त्रीस्व३प नथी, यु भेद्यस्व३५ ० . ' एवं ' ०४ प्रमा पुरिसेण आसे हत्थी' ते पुरुष३५ पलु नथी, घोडाइयं पशु नथी भने साथीय पशु नथी. प्रश्न- 'पभ्रूणं भंते ! बलाहए एवं महं जाणरूवं परिणामेत्ता अणेगाईं जोयणाई गमितए !' हे अहन्त ! शु भेध मे विशाल शस्टने सारे परिभीने અનેક યાજત દૂર જઇ શકવાને સમર્થ છે! उत्तर जहा इत्थिरूवं वहा भाणियन्नं गवरं एगओ चक्कवालं पि गच्छर, दुहओ चकवालं वि गच्छइ' हे गौतम! स्त्री मारे परिभवा विधे જેવા સૂત્રપાઠ કહ્યો છે, એવા જ સૂત્રપાઠ ચાન (શકટ) રૂપે પરિણમવા વિષે પણ કહેવા જોઇએ. અને તે सूत्रया: 'पभूणं भंते ! वलाहए एवं महं जाणरुवं परिणामेत्ता या शहरीने ऊसिओोदयं वा गच्छ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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