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________________ ६३० मगतीचे विस्रसारूपोयोध्यः । यावत्करणाव 'पुरुषरूपं या, हस्तिरूपं ना, यानरूपं वा, युग्य-गिल्लि-पिल्लि-शिविका' इति संग्रामम् । मंगवानाह-हंता, पम्' त, गौतम ! तत्तदाकारेण विखसामावेन परिणति माप्य अनेकयोजनानि गन्तुम् । 'हंता पभू' हे गौतम । प्रमुःसमयः पुनीतमः पृराति-पभूणं मंते। प्रभुः समर्थः मेघः 'एगं मई एकं महत् 'इत्यिख्य स्त्रीरूपं 'परिणामेत्ता' परिणमथ्य पारिणामिक निर्माय 'अणेगाई' अनेकानि 'जोअणाई' योजनानि 'गमित्तए' परिणमन होता है यह उसमें स्वाभाविक होता है। वहां 'यावत् पदसे 'पुरुपरूपं घा, हस्तिरूपं वा, यानरूपंचा, युग्य, गिल्लि, घिल्लि, शियिका' इन पूर्वोक्त पदोंका संग्रह किया गया है। गौतमके इस प्रश्नका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि-'हंता पभू' हे गौतम ! मेघ स्वाभाविक रीतिसे उनर आकारोंके रूपमें परिणत हो सकता है। पुनः गौतम प्रभु से प्रश्न करते हैं कि 'भंते णं बलाहए एगं महं इत्थिरूपं परिणामेचा अणेगाई जोयणाई गमित्तए पभू' हे भदन्त ! मेघ एक विशाल स्त्रीके रूप में परिणत होकर अनेक योजनों तक .जानेके लिये समर्थ है क्या ? यह प्रश्न इसलिये किया गया है कि मेघमें भिन्न प्रकार के आकार जो दिखलाई देते हैं वे देखतेर हो. नष्ट हो जाते हैं-अतः ऐसी स्थिति में वह उसका आकार अनेक ४२वाने na 'परिणमित्तए' पहना प्रयोग या छ. मपभा र पशिशुमन थाय થાય છે તે તેમાં સ્વાભાવિક રીતે જ થાય છે. ઉપરના ઝનમાં જે “માવત' પદને પ્રયોગ થયે છે તેના દ્વારા નીચે સૂત્રપાઠ 48 ४शया छ-'पुरुपरूपं वप, हस्तिरूपं या, यानरूपं वा युग्य, गिल्लि, थिोल्ल, शिक्षिका नना सावार्थ नये प्रभारी छ- मधं विशाल श्री ३२, परित થવાને સમર્થ છે? શું મેઘ એક વિશાલ પુરુષરૂપે, હાથીરૂપે, ગાડારૂપે, યુગ્યરૂપે, સિદ્ધિ રૂપે, થિદ્વિરૂપે, પાલખીરૂપે અને સ્મૃન્દમાનિકા (બાવિશેષરૂપે પરિણત થવાને સમર્થ છે ? થાન, યુગ્ય વગેરે પદોને અર્થે પહેલાં આવી ગમે છે SHR-'हंता पभ गौतम! . मेघ कासाविशते ते..मा ३३ પરિણમી શકે છે. AR-'भंते ! णं बलाहए एगं महं इत्थिरुवं परिणामेत्ता अशेंगाई जोयणाई गभित्तए पर 3 महन्त ! भेध महा स्त्रीमारे परिणामी ચોજન પર્યન્ત દૂર જવાને શુ સમર્થ છે. આ પ્રસં કરવાનું કારણ એ છે કે મેઘમાં get get A२ पाय छ तनतन्नतामांना तय .in
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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