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________________ प्रमेयंचन्द्रिका टी. श. ३ उ.४ २.२ चैक्रियवायुकायव्यक्तव्यतानिरूपणम् ६२३ गच्छई' आत्मद्धर्या स्वशक्त्या स्वलच्या वा गच्छति ! 'परिड्डीए गच्छइ' परद्धर्थावा गच्छति ! परशच्या वा गच्छति भगवानाह 'गोयमा ! आयड्ढीए' इत्यादि । हे गौतम ! स वायुकायः आत्मद्धर्या स्वसामर्येणैव 'गच्छइ' गच्छति, 'णो परिइडीए गच्छइ' नो परदऱ्या परमयुक्तो गच्छति 'जहा आयडूडीए' यथा आत्मद्धी गच्छति एवं चेत्र' एचैव तथैव 'आयकम्मुणा वि' आत्मकर्मणाऽपि आत्मक्रिययाऽपि 'आयप्पयोगेण वि' आत्ममयोगेणापि आत्मप्रयुक्तेनापि नतु परमयुक्तेन इति 'भाणियव्वं' भणितव्यम् वक्तव्यम् । पुनगौतमः पृच्छति 'से भंते ! इत्यादि । हे भदन्त ! स वायुकायः किम् 'ऊसिओदयं गच्छइ !' उच्छ्रितोदयम् उत् ऊर्व श्रितः उदयः दैर्घ्यं यत्र गमने तत् उच्छ्रितोदयम् , लब्धि से इतनी दूर तक जाता है या परकी शक्तिसे इतनी दूर तक जाता हैं। इसके उत्तर में प्रभु गौतमसे कहते हैं कि 'गौयमा' हे गौतम ! वह वायुकाय 'आयड्ढीए गच्छई' अपनी निजकी शक्तिसेही इतनी दूर तक जाता है । 'नो परड्ढीए गच्छई' परकी शक्ति सहायता या प्रेरणा से नहीं जाता है। 'जहा आयड्ढीए एवंचेव आयकम्मुणा वि, आयप्पयोगेण वि भाणियन्वं' तो जिस तरह यह वायुकाय अपनी निजकी सामर्थ्य से जाता है, उसी तरह यह अपनी निजकी क्रिया से और अपने निजके प्रयोग से-अपने आप से प्रयुक्त होने पर गमन करता है परके द्वारा प्रयुक्त होनेसे नहीं जाता है-ऐसा यहां कहना चाहिये-अर्थात् समझ लेना चाहिये। ___ अब गौतम प्रभु से पुनः प्रश्न करते हैं कि-'से भंते ! कि असि ओदयं गच्छइ, पयोदयं गच्छइ ? हे भदन्त ! वायुकाय जय इतनी અનેક જન સુધી જવાને સમર્થ છે, તે તે પોતાની લબ્ધિથી (શકિતથી) જ એટલે દૂર જાય છે, કે અન્યની લધિથી (શકિતથી) એટલે દૂર જાય છે ? उत्त२-'गोयमा!' हे गौतम! 'आयडढीए गच्छइ ते तेनी पोतानी शस्तिथी र ६२ लय छ, 'नो परडढीए गच्छइ अन्यनी तया-सहायताथा पर तो नथी. जहा आयडडीए एवं चेत्र आयकम्मुणा वि, आयप्पयोगेण वि भाणियन्न,' पाथिवी शते तेनी पातानी શકિતથી ગમન કરે છે એ જ પ્રમાણે તે પિતાની જ ક્રિયાથી અને પોતાના જ પ્રકાથી ગમન કરે છે. “પિતાના પ્રયોગથી” એટલે કે પોતાની જાતે જ પ્રયુક્ત થવાથીઅન્યના દ્વારા પ્રયુકત થઈને નહી.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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