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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.४ सू.१ क्रियायावैचित्र्यज्ञानविशेपनिरूपणम् ६०१ लापेन चतारो भङ्गः, अनगारो भदन्त ! भावितात्मा वृक्षस्य किम् अन्तः पश्यति, वहिः पश्यति ? चतुर्भङ्गः, एवं किं मूलं पश्यति, कन्दं पश्यति ? चतुर्भङ्गः, मूलं पश्यति, स्कन्धं पश्यति ? चतुर्मङ्गः, एवं मूलेन वीज: संयोंजयितव्यम् , एवं कन्देनापि समं संयोजयितव्यम् , यावत्-बीजम्, एवं यावत् पुष्पेण समं चीजं संयोजयितव्यम्, अनगारो भदन्त ! भावितात्मा वृक्षस्य कि फलं पश्यति यीज पश्यति ? चतुर्भङ्गी ॥ सू० १ ॥ है, यानं को नहीं देखता है । इस अभिलाप से यहां पर पहिले की तरह चार भंग करलेना चाहिये । (अणगारे णं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स कि अंती पासइ, यहिं पासइ १) हे भदन्त ! ) भावितात्मा अनगार क्या वृक्ष के अन्त भागकों देखता है कि पाहर के भाग को देखता है ? (चउभंगा) हे गौतम! इसके उत्तर में चार भंग जानना चोहिये । (एवं किं मूल पासइ, कंद पासइ ?) इसी तरह से इस प्रश्न के उत्तर में भी कि 'भावितात्मा अनगार क्या मूलको देखता है ? कि कंदको देखता है ? चार भंगरूप उत्तर जानना चाहिये (मूलं पासइ ? खंधं पासइ) मूल को देखता है कि स्कंधको देखता है ? (चउभंगो) इसका भी उत्तर चार भंगरूप में जानना चाहिये । (एवं मूलेणं बीय संजोएयव्वं, एवं कं देणं वि सम संजोएयां जाव बीय)इसी प्रकार से मूल के साथ वीजका संयोग करना चाहिये-कंद के साथ भी बीज का संयोग करना चाहिये । સહિત દેવને દેખે છે પણ યાનને દેખતે નથી, આ પહેલો વિકલ્પ બતાવ્યું છે. બીજી ત્રણ વિકલ્પ ઉપર મુજબ જ સમજવા દેવના વિષયમાં જેવા ચાર વિકલ્પ કહ્યા છે એવા જ ચાર વિકલ્પ અહીં પણ બનશે. (अणगारेणं भंते ! भावियप्पा रुक्खस्स किं अंतो पासइ, बहिं पासइ?) હે ભદન્તા ભાવિતાત્મા અણગાર, વૃક્ષના અંદરના ભાગને દેખે છે, કે બહારના ભાગને हे छ? (चउभंगो) गौतम! मा प्रश्नमा उत्तरमा यार स सभा मे भेटले? यावि४८ सभा (एवं किंमलं पासर कंपास?) सावितात्मा भागार શું મૂળને દેખે છે કે કંદને દેખે છે? આ પ્રશ્નનો ઉત્તર પણ ચાર વિકલ્પથી આપવા MUR. मूलं पासइ, खंध पासइ ?) भावितात्मा भगार भूगने मे छ । यउने हेछ ? (चउभंगो) ते उत्तर पार या विध्योपानी र सभा . (एवं मूलेणं वीयं संजोएयव्य, एवं कंदेणं वि समं संजोएयव्यं जाव वीय) भी પ્રમાણે મૂળની સાથે બીજને સંગ કરવું જોઈએ, કંદની સાથે પણ બીજને સગ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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