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________________ ५८४ भगवती 9 स ममचादा फालतः क्रियगिरं भवति ? मण्डितपुत्र ! एकजीवं मतीत्य अक न्येन एक समयम् उस्कृप्टेन देशोना पूर्वकोटी, नानाजीवान, मतीत्य सर्वाद्धा, गममा संयतस्य सल भदन्त । मत्तयमे वर्तमानस्य सर्वा अपि खल अमादा फलतः फिरि भवति ? मण्डितपुत्र ! एकजीवं मतीत्य जघन्येन अंतर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन देशोना पूर्वकोटी, नानाजीवान् मतीत्य सर्वाद्धा, तदेव भदंत | प्रमत्त संगत नामके छटवे गुणस्थान में वर्तमान प्रमत्त संगत साधु के (सव्वा वियणं पराद्धा) पाले गये प्रमत्त संयतका पूरा काल (फालओ) फालकी अपेक्षा से (केवचिरं होइ) कितना होता है ? ( मंदिरपुत्ता ! एगजी पडच जहणणेणं एकं समय, उक्कोसेणं देणा पुव्धफोडी) हे मंडितपुत्र ! एक जीव की अपेक्षा से प्रमत्तसंयतका फाल जघन्य एक समय है, और उत्कृष्ट फाल देशोनपूर्वकोटि है । तथा ( णाणाजीवेपच) नानाजीयोंकी अपेक्षा से. (सव्वद्धा) सब काल है । (अप्पमत्त संजयस्स णं भंते ! अप्पमत्तसंपमे वहमाणस्स सवा विणं अप्पमतद्वा कालओ केवचिर होइ) हे भदन्त 1 अप्रमत्तसंयत नामके ७ वें गुणस्थान में वर्तमान अप्रत्तसंगत के अप्रमत्तसंयतका पूरा काल फालकी अपेक्षा कितना है ? (मंडियपुत्ता 1 एगजीवं पट्टच जपणेणं अंतोमुद्दत्तं, उक्कोसेणं देणा पुव्यकोडी, णाणाजीवे पडुच्च सव्चद्वे) हे मंडितपुत्र ! एकजीवकी अपेक्षा से अप्रमत्त संयतका काल जघन्य अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट काल देशोन पूर्वकोटि है। प्रभत संयंत नाभना छट्टा गुथुस्थानवर्ती प्रभत संयंत साधु द्वारा (सच्चा वियणं पत्तद्धा) भावा भावे संयमना (कालओ) पूरे पूरे आज (केवचिरं होई ?) उटा डाय छे ? (मंडियपुत्ता ! एग जीवं पुडुच्च जहणणेण एक समय, उकोसेणं देखणा पुन्नकोडी) ले भडितपुत्र 1 मे लना अपेक्षा प्रभत्त संयमना छा માં આછા કાળ એક સમય છે, અને વધારેમાં વધારે કાળ દેશેાનપૂર્વ કાટિ. છે. તથા ( णाणा जीवे पडुच्च) विविध लवानी अपेक्षाओ - ( सव्वद्धा) मा . छे.. (अप्पमत्तसंजयस्स णं भंते । अप्पमत्तसंयमे वट्टमाणस्स ! सव्वा विणं अप्प - : Haat कालओ केचि होइ ? के महन्त ! अप्रभन्त संयत नाभंना सतिभा गुणुસ્થાનવતી, અપ્રમત્ત-સ ́યત દ્વારા પોળવામાં આવેલ અપ્રમત્ત સંયમના પૂરે પૂરા ड डेटा छे ? (मंडियपुत्ता! एगजीवं पहुच जहणेणं अतोमुहुतं, उकोसेणं देखणा पुव्वकोडी, णाणा जीवे पडुच सव्वद्धं ) : डे मंडितपुत्र 1 ली - 1 · • ma
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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