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________________ - - - मवस्तीचे पिटापनतायां चपेटामयादिना कुटनक्रियायाम् 'परियारणयाए' परितापन तायां पीडामापणायाम् 'चटई' पर्वते भयर्तमानतया हेतुर्भवति, 'से तेणटेणे' वत् तेनार्थेन उपर्युक्त हेतुना मंढियपुता' हे मण्डित पुत्र ! 'एवं वुमा' एवं वक्ष्यमाणमकारेण उच्यते यत-'जायं च णं से जीवे' यावष खलु यावत्का. लावधि स जीवः 'सया समियं सदासमितं- एयइ जाव-परिणमई' एजते यान-परिणमति, यावत्करणाव-पेजते, चलति, स्पदन्ते, घट्टते, शुभ्यति, उदीरयति, तं तं मायम्' इति संग्रायम्, 'वायं च गं' तापच खल्ल 'वस्स जीवस्स' तस्य एजनादि क्रियायुक्तस्य जीवस्य 'अंते' मरणसमये 'अंतकिरिया' अन्त क्रिया सकलकर्मक्षयरूपा 'न भवई' न भवति । अय जीवस्य कदाचित निकियता-सम्भवति नवेति मण्डितपुत्रो मगवन्तं पृच्छति-'जीवेणं भंते !' इत्यादि। धप्पड चूंसा आदि द्वारा उन्हें पीटने में 'परियावणयाए' पीडा देने में 'चट्टइ' चर्तता है, 'तेणटेणं' इस कारण 'मंडियपुत्ता' हे मण्डितपुत्र ! 'एचंयुचद मैंने ऐसा कहा है कि 'जावं च णं से जीवे सया समियं एयइ, जाव परिणमह, ता य णं तस्स जीवस्स भंते अंतकिरिया न भवई' जयतक यह जीव सदा समितरूप से कंपता है अथवा-रागादिभाव से युक्त बना रहता है यावत् उस उस भावरूप से परिणमता रहता है, तबतक एजनादिक्रिया युक्त उस जीवकी अन्त समय में मुक्ति नहीं होती है। यहां यावत्शब्द से पूर्वोक्त 'व्येजते' आदि समस्त क्रियापदों का तथा 'तं तं भावं' इन पदों का ग्रहण हुआ है। अब मंडितपुत्र प्रभु से यह पूछते हैं- कि हे भदन्त ! क्या कभी ऐसा भी समय होता होगा जय जीव में निष्क्रियता आजाती होगी। भने पी। हेपामा 'वह' प्रवृत्त याय छ. तेणद्वेणं मंडियपुत्ता! एवं वुचई' मलित पुत्र ! ते मे है 'जावं च णं से जीवे सया समियं एयइ, जात्र परिणमइ, ताचं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया a sags જયાં સુધી જીવ સદા સમિત રહે છે અથવા રાગાદિ ભાવથી યુક્ત રહે છે, યાવતીને તે ભાવરૂપે પરિણમતે રહે છે, ત્યાં સુધી ઐજનાદિ ક્રિયાયુક્ત તે જીવને अन्त भुति त ती नया. म. यावत् ' पहया Ydजते माहि समस्त लियापहोना तथा 'तं तं भाव मा हाने अडए राया छ वभाजितपुर આણગાર મહાવીર પ્રભુને એ પ્રશ્ન પૂછે છે કે હે ભદન્ત ! કોઈ પણ એ સમય રથ છે કે જ્યારે જીવનમાં નિષ્ક્રિયતા આવી જાય છે ? એજ વાત નીચેના સૂત્ર દ્વારા ५७पामा माछ-'जीवेणं भंते! सया समियं णो एयह जाव नो तं तं
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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