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________________ - - - - ५४८ • মশনীগ भवति ! मण्डितपुत्र ! पापण स जीवः सदा समितं नो एजते, यावत्-नो तं तं भावं परिणमति, तायग स जीयो नो आरमते, नोसंरमते, नो समारमते, नो आरम्भे वर्तते, नो संरम्म वर्तते, नो समारम्भे वर्तते, अनारममाणः, असंरभमाणः, अगमारममाणः, आरम्भेञ्चर्तमानः, संरम्मेऽवर्तमानः, समारम्मेहो सकती है ऐसा आप किस कारण से कहते है (मंडियपुत्सा। जायं च णं से जोवे सया समियंणो गयइ, जाव नो तं तं भावं परिणमह, तावं च णं से जीवे णो आरंभइ, नो सारंभह, णो समारंभह नो आरंभे वह, नो मारंभे वइ, नो समारंभे वहह, अणारं भमाणे, असारंभमाणे, असमारंभमाणे, आरभे अवट्टमाणे, सार भे अवमाणे समारंभे अवहट्टमाणे, पहणं पाणाणं, भूयाणं, जीवाणं सत्ताणं अदुपखावणयाए जाव अपरितावणयाए चइ) हे मण्डितपुत्र ! जय तक वह जीव सदा समित न रहे रागादि भावमें न वर्त, अथवा रागद्वेपरूप में न कंपे, यावत् उस उस भावरूप न परिणमे, तब तक वह जीव आरंभ नहीं करता है, संरंभ नहीं करता है, समारंभ नहीं करता है, आरंभ में नहीं वर्तता है, संरंभ में नहीं वर्तता है, समारंभ में नहीं वर्तता है, इस तरह आरंभसे रहित हुआ, संरंभ से रहित हुआ, समारंभ से रहित हुआ वह जीव अनेक प्राणियों को, अनेक भूतोंको, अनेक जीवोंको, अनेक सत्त्वोंको दुःखित नहीं भुति मेगा डे छ ? (मंडियपुत्ता ! जावं च णं से जीवे सया समियं णो एयइ, जाव नो तं तं भावं परिणमइ, तावं च णं से जीवे णो आरंभइ, नो सारं भइ णो समारंभइ, नो आरंभे वट्ट, नो सारंभे वइ, नो समारंभे वइ, अणारंभमाणे, असारंभमाणे, असमारंभमाणे, आरभे अवमाणे, सार मे अवट्टमाणे, समारंभ अवट्टमाणे, बहणं पाणाणं, भूयाणं, सत्ताणं, अदुक्खा वणयाए जाव अपरितावणयाए वट्टई)। મંડિતપુત્ર! જ્યાં સુધી તે જીવ સદા સમિત ન રહે-રાગાદિથી યુકત ન રહેઅથવા રાગદ્વેષથી આત્માને દૂષિત ન કરે, (કાવત) ઉપર્યુક્ત સમસ્ત ભાવ રૂપે ન પરિણમે. ત્યાં સુધી તે જીવ આરંભ કરતો નથી, સંરંભ કરતું નથી, સમારંભ કરતા નથી, આરંભમાં પ્રવૃત્ત થતું નથી, સંરંભમાં પ્રવૃત્ત થતા નથી; સમારંભમાં પ્રવૃત્ત થતું નથી, આ રીતે આરંભ, સંરંભ અને સમારંભથી રહિત અને તે જીવ અનેક પ્રાણિઓ, અનેક ભૂતને, અનેક જીવોને અને અનેક સત્ત્વોને દુઃખી કરતું નથી,
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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