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________________ - - ५२० मगनतीजे ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति 'जाव-सोहम्मो कप्पो' यायन सौधर्मः कल्पः 'सौधर्मकल्प. पर्यन्तं गच्छतीति भावः । यावच्छन्देन यानव्यन्तरज्योतिपिकाणाम् संग्रहः, पर्यवसाने गौतमः भगवयास्यं ममाणयमाह-'सेवं भंते 'सेव मते । त्ति'इति । तदेवं भगवन् ! तदेवं भगवन् ! इति, हे भगवन् ! इविगम्देनामंत्र्य भवता यत्मतिपादितं वत् एवं-सत्यमेव, 'चमरो समत्तो' चमरः समाः उपचारात् चमरवक्तव्यता समाता परिपूर्णा इति भावोऽनसेयः ॥ मू० १३ ।। तृतीयशतकस्य द्वितीयोदेशकः समाप्तः ॥ उप्पयंति' उर्ध्व में 'जाय सोहम्मो कप्पो' यावत् सौधर्मकल्पतक जाते हैं । यहाँ यावत् शन्दसे पानभ्यन्तर और ज्योतिपिकों का ग्रहण हुआ है। अन्त में गौतम भगवान के वाक्य को प्रमाण मानकर कहते हैं कि 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' हे भदन्त ! इस प्रकार सम्बोधित करके गौतम ने 'आपने जो प्रतिपादित किया है वह सत्य ही है सत्य ही है ऐसा कहा! 'चमरोसमत्तो' चमर समाप्त हुआ। इसका तात्पर्य यह है चमर के संबंध की यह वक्तव्यता पूर्ण हुई सू०१३।। । इस प्रकार तृतीय शतफका यह वित्तीय उद्देशक समाप्त हुआ। उद उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो' सोधः ४४५ सुधा य गमन ४२ छे. मडी 'यावत (जाप' पहथी वानव्यन्त२ मन ज्योतिपि वान पर हुए કરવામાં આવેલ છે. આ પ્રકારનો મહાવીર પ્રભુને જવાબ સાંભળીને ગૌતમ સ્વામી તેમનાં વચને भोपतानी संपूर्ण श्रद्धा ४८ ४२ता 83 2 3 'सेवं भंते । सेवं भंते ! ति' ક ભદત ! આપે જે વિષયનું પ્રતિપાદન કર્યું તે યથાર્થ છે. તેમાં શંકાને કઈ સ્થાન જ નથી. આપની વાત તદ્દન સાચી છે. 'चमरो समत्तो' या वृत्तान्त मारीत सभात थाय छे. ॥ सू. १३॥ ત્રીજા શતકને બીજે ઉદ્દેશક સમાપ્ત.
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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