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________________ भगवनीयो - - - - - ४९६ एवं क्यासी-एवं खल्ल भंते ! भए तुभं नोसाए सक्के देविंदे, देवराया सयमेव अचासाइए, जाव-तं भई णं भवतु देवाणु. प्पियाणं जस्सम्हि पभावेणं अकिहे जाव-विहरामिः तं खामेमि णं देवाणुप्पिया! जाव-उत्तरपुरस्थिमं दिसीभागं अवकमइ जाव-बत्तीसइविहं नविहि उवदंसेइ जामेवदिसि पाउभूए, तामेव दिसि पडिगए, एवं खल्ल गोयमा! चमरेणं असुरिदेणं, असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी जाव-लद्धा, पत्ता अभिसमण्णा गया, ठिई सागरोवमं महाविदेहे वासे सिज्झिहिड़ जाव-अंत काहिइ ॥ सू० १२ ॥ ___ छाया-ततः स चमरोऽमुरेन्द्रः, अमुररानो बजभयविममुक्तः शक्रेण देवेन्द्रेण, देवराजेन महता अपमानेन अपमानितः सन् चमरचञ्चायाः राजधान्याःसभायाः मुधर्मायाः, चमरे सिंहासने अपहत्तमनःसंकल्पः, चिन्ता शोकसागर तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया' इत्यादि । सूत्रार्थ-(तएण) इसके बाद (वनभयविप्पमुक्के) वज़ के भयस रहित हुआ, एवं (सक्केणं देविदेणं देवरण्णा महया अवमाणेणं अवमाणए समाणे) देवेन्द्र देवराज शक के द्वारा बहुत अधिक अपमान से तिरस्कृत किया गया (से असुरिंदे असुरराया चमरे) वह असुः रेन्द्र असुरराज चमर (चमरचंचाए रायहाणीए) चमरांचा नामकी राजधानी की (सुहम्माए सभाए) सुधर्मा सभाके (चमरंसि सीहासपंसि) चमर नामक सिंहासन पर बैठा । उस समय (ओहयमण'तएणं से चमरे अमरिंदे असुरराया' त्या सूत्रार्थ:-(तएणं) त्या२ मा (वज्जभयविप्पमुक्के). ५०० सयथा मुरत a u (सक्केणं देविदेणं देवरण्णा महया अवमाणेणं अवमाणए समाणे) देवेन्द्र देव श द्वारा अतिशय अपमानित भने तिरस्कृत यया (से अमरिंदे अमराया चमरे ) त मसुरेन्द्र २५९२२१०४ यम२ (वमरचंचाए रायहाणीए सुह १) यभरय या यानानी सुधा समाना (चमरे सिं सीहासणंसि) अमरनाभन सिंहासन प२ म8. त्यार (ओईयमणसंकप्पे) तनावियारशस्तिन - अपर म्माए
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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