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________________ - - - - - - - - - ४७८ भगवतीय संम्येयान मागान् गछति, कर्वम् समयेयान मागान, गरछति, चमरस्य सलं भदन्त ! असुरेन्द्रस्य, अनुररानस्प, ऊर्ध्वम्, अपः, निर्यकच गतिविषयः कारः ! फतरेभ्योऽस्पोया, बहुको बा, तुल्यो या, विशेषाधिको का? गौतम ! सस्तोक क्षेयं चमोऽमरेन्द्रः, अमुररानः ऊर्ध्वम् उत्पतति एकेन समयेन, तिर्यक है-(तिरियं संखेने भागे गह) तिरछे जानेका क्षेत्र संख्यातभागप्रमाण अधिक है अर्थात् एक समय में शक तिरछे क्षेत्र में जाना चाहे तो पहिलेकी अपेक्षा यह कुछ अधिक क्षेत्रतक जाता है । (उ संखेने भागे गच्छद) इसी तरह ऊपर जाने का क्षेत्र इसका एक समय में संख्यातभाग प्रमाण अधिक है। अर्थात एक समय में यदि शक्र ऊपर के क्षेत्र में जाना चाहे तो तिर्यक क्षेत्र की अपेक्षा कुछ अधिक क्षेत्रतक जाता है । (चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररणो उ8 अहे तिरियंच गह विसयस्स फयरे फयरेहितो अप्पे चा पहुए वा तुल्ले या विसेसाहिए चा) हे भदन्त ! असरेन्द्र असरराज चमर का ऊचे जाने का विपय क्षेत्र, नीचे जाने का विपयक्षेत्र, और तिरछे जाने का विषयक्षेत्र फोन किनकी अपेक्षा अल्प है ? कौन किनकी अपेक्षा से बहुत है ? कौन किनकी अपेक्षा से तुल्य है अथवा कौन किनकी अपेक्षा से विशेषाधिक है ? (गोयमा ! सव्वत्थोवे खेत्तं चमरे असुरिंदे असुरराया उ? उप्पयह एक्केणं समएणं) हे गौतम असुरेन्द्र समन श शछ. (तिरिय संखेज्जे भागे गच्छद) न ति गमन ३२० વાનું ક્ષેત્ર અધે ગમન ક્ષેત્ર કરતાં સંખ્યાત ભાગ પ્રમાણ અધિક છે. એટલે કે શક એક સમયમાં જેટલું નીચે જઈ શકે છે તેના કરતાં વધારે ક્ષેત્ર સુધી તે એક સમયમાં तिरछु भतरा छे. (उई संखेज्जे भागे गच्छइ) र प्रभाएं at સમયમાં તેના કરતાં પણ સંખ્યાત અધિક ભાગપ્રમાણુ ઉર્ધ્વગમન કરી શકે છે. એટલે કે એક સમયમાં શક જેટલા અંતરનું તિરકસ ગમન કરી શકે છે તેનાથી વધારે 'मतर्नु मन 0 श छ. (चमरस्स गंभंते ! असुररण्णो उड़ अहे तिरिय च गइविसयस्स कयरे कयरेहितो अप्पे वा बहुए वा तुल्ले वा विसेसाहिए वा) છે ભદન્ત! અસરેદ્ર અસુરરાજ ચમરના ઉર્વ અધો અને તિરછા ગમનની તલના કરવામાં આવે, તે, કયું કેના કરતાં ન્યૂન છે,કયું કે ના કરતાં વધારે છે, કહ્યું કેતા मशार छ, भने ध्यानात विशेषाधि छ १ (गोयमा.) हे गौतम ! (सन्धत्योवे । खेत्तं चमरे अमुरिंदे अमुरराया उर्ल्ड उपयई एक्केणं समएणं) असुरेन्द्र मसुर
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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