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________________ प.टी. श. ३ उ.२ सू. १० देवानां पुद्गलप्रक्षेपमतिसंहरणादि निरूपणम् ४६७ देवः खलु 'महड्ढाए' महर्दिकः अतिशयसमृद्धिसम्पन्नः 'जाव-महाभागे' यावत्-महानुभागो महामभावशाली च वर्तते, यावत् करणात 'महाद्युतिका' इति संग्रह्य ते, 'पुवामेव' पूर्वमेव 'पोग्गलं' पुद्गलं 'खिवित्ता' क्षिप्त्वा प्रक्षिप्य 'पभू प्रभुः समर्थः 'तमेव' पूर्व प्रक्षिप्तपुद्गलमेव 'अणुपरियहित्ताणं' अनुपर्यटय पृष्टतो गत्वा गमनेन अनुसृत्य खल 'गेण्डित्तए' ग्रहीतुम् ? अर्थात् पूर्वपक्षिप्तमेव पुद्गलम् अनुगमनद्वारा ग्रहीतुं समर्थः किम् ? भगवान् उपर्युक्तपूर्वपक्षं रवीकुर्वन्नाह-'हंता, पभू' हन्त, प्रभुः, हे गौतम ? अवश्यमेव ग्रहीतुं समर्थः ! गौतमस्तत्र कारणं पृच्छति-' से केणट्टेणं भंते !' इस प्रकार पूछा-'देवेण भंते !' हे भदन्त ! जो देव 'महिड्डीए' बडी भारी ऋद्धिवाले होते हैं, 'महज्जुहए' महाद्युतिवाले होते हैं, 'जाव' यावत् 'महाणुभागे'महाप्रभाववाले होते हैं, यहां 'यावत्' शब्द से पूर्व वर्णित भवनावास आदिकों का ग्रहण किया गया है। वे 'पुवामेव पोग्गलं' पहिले पुग्दल को 'खिचित्ता' फेंककरके 'तमेव' उसी प्रक्षित पुद्गल को 'अणुपरियहित्ताणं पभू' पीछे से जाकर 'गेणिहत्तए' ग्रहण करने के लिये 'पभू' समर्थ हैं क्या? अर्थात् पूर्वप्रक्षिप्त ही पुद्गल को अनुगमन द्वारा ग्रहण करनेके लिये वे समर्थ हैं क्या ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु गौतम से कहते हैं कि-हंता पभू' हां गौतम! जो देव महद्धिक आदि विशेपणों से युक्त होता है वह अवश्य ही पूर्व में फेंके गये पुद्गल को पीछे से जाकर अवश्य ही ग्रहण-पकड सकने के लिये समर्थ है । गौतम अब इस पकड सकने में कारण क्या है इस बातको प्रभु से जानने के निमित्त प्रश्न करते हैं 'से ४शन एवं पयासी' तम २५१ प्रभारी पच्यु- देवेणं भंते ?, 3 मत ! ने देवा 'महिड्डीए' धoll मारे ऋद्धिवाणा सय छ, 'महज्जुए' माधुतियाणा हाय छ, 'जाव महाणुभागे (यावत) महा अलावा हाय छ, मायावत् । पया थित मनसे AILE एY ४शयां छ) तेमा 'बामेव पोग्गलं खिचित्ता' पता तमना द्वारा ३४ामां-छ।उवामां आवेला Yसानी 'तमेव अणुपरिपट्टित्ताणं पभू गेण्हित्तए ?' पा ४२ ते२ ५४ी २४पाने समर्थ छ wi? ४ानुं તાત્પર્ય એ છે કે તેમણે જ ફેંકેલા પુદગલને પીછો પકડીને તેઓ તેને ફરીથી પકડી શકવાને શકિતમાન છે ખરો ? उत्तर-'हंता पभृगौतम ! , मह, माधुति माह विशेष थी યુક્ત દે, ફેકેલા પુદ્ગલની પાછળ જઈને તેને પકડી શકવાને અવશ્ય સમર્થ છે. તેઓ શા કારણે પ્રક્ષિસ પુદગલેને ફરીથી પકડી શકતા હશે તે જાણવા માટે ગૌતમ
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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