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________________ मपरतीमत्रे बंदिशा' नमंसिता' पन्दित्या नमस्यित्वा च 'उत्तरपुरत्यिमयं' उत्तरपौरस्त्यं 'दिसीमाग' दिग्भागम् ईशानकोणम् 'अवगामई' अपझामति अपनान्तः, तत्र गला 'चामेणं पादेणं' नामेन पादेन 'निरसुती त्रिकृलः त्रियागन भूमि पृथि. चीम् 'दखेड' दलपति आहन्ति, माहत्य च भूमी पारत्रयं पाघातं कृत्वा 'चमरं भरिद अमुरराय' चमरम् अमरेन्द्रम् अमुररानम् 'एवं' वक्ष्यमाणप्रकारेण 'ययासी' यादीत्-'मा चमरा ! अगरिदा। असुरराया" भो चमर! अमरेन्द्र ! अमुररान ! 'मुक्कोसि मुक्तोऽसि खल्ल त्वम् 'समणस्स' श्रमणस्य 'भगवमो भगवतः 'महावीरस्स' महावीरस्य 'पभावेणं' प्रभावेण, 'नहिते इयाणि ममामी भय अत्यि' नहि तब इदानीम् साम्मतम् मत्तः मम सकागात भयमस्ति 'तिकटु' इति कृत्वा उक्तरीत्या कार्य सम्पाघ 'जामेव दिस" यामेव दिशम् आश्रित्य 'पाउन्भूए' मादुर्भूतः 'तामेव दिसं ' तामेव दिशं 'पडिगए' प्रतिगतः परारत्तः ॥ सू० ९ ॥ किया 'वंदित्ता नमंसित्ता' चंदना नमस्कार करके फिर वह 'उत्तर पुरस्थिमं दिनीभार्ग उत्तर पौरस्त्य दिग्विभाग में- (ईशानकोणमें) 'अवझमई' चलागया । वहां जाकर के उसने 'वामेणं पादेणं' वायें पैर से 'तिक्खुत्तो' तीनचार 'भूमि पृथिवी को 'इ' ताडित किया-अर्थात वहां जमीन पर तीन बार उसने अपना वांया पैर पटका-तीन चार भूमि पर वायां पैर पटककर 'असुरिदं असुरराय' असुरेन्द्र असुरराज 'चमरं चमर से एवं चयासी' उसने ऐसा कहा'भो ! चमरा ! असुरिंदा ! असुरराया! 'हे चमर असुरेन्द्र । असु. रराज! मुफोसिणं तुम मुक्त किये जाते हो 'समणस्स भगवओ महावीरस्स' श्रमण भगवान महावीर के 'पभावेणं' प्रभाव से 'नहि ते इयाणिं ममाभो भयं अरिंग' अब तुम्हें मेरे से कोई भी भय नहीं रहा है 'त्तिकट्ट' इस प्रकार कहकर अर्थात् उक्तरीति से कार्यको या ४१, नभ२४२ ४. वंदित्ता नमंसित्ता नमः॥२ ४शन 'उत्तरपुरथिमं . दिसीमागं अवकमइ शानभायो . Airsनतेणे 'वामेणं पादेणामा यस 'तिक्खुत्तो' र पार 'भूमि दलेइ भान ५२ ५७।डीन अमरिंदे असुररायं चमरं एवं चयासी' मसुरेन्द्र, मसुर। यभरने मा प्रभारी ४ - भो चमरा ! असुरिदा असुरराया ? य२ ! मसुरेन्द्र ! असु२२० । 'मुक्कोसिणं वे भुत तो ४३ छु, 'समणस्स भगवओ' या श्रम असवान મહાવીરના પ્રભાવથી આજે તું બચી ગયો છેહવે મારા તરફથી તને કેપ ભય રહ્યો नथी. 'त्तिकह' मा प्रभा डीन-मया या पोतार्नु पूई शने जामेव
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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