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________________ ४५८ भगवतीपत्रे " tararaai anter 'ताए उपाप' तया उत्कृष्टया दिव्यया गया 'जात्र जेणे' यावत् 'देवाप' देवानुमियाः भगवन्तः ' तेणेय ' तत्रैव ' उपागच्छामि उपागच्छामि उपागतोऽस्मि यावत्कारणात् त्वरया चपत्रया इत्यारभ्य दिव्या त्या इति मध्ये गाँव अशोकवरपादपः पृथिवीशिलापट्टक इत्यन्तं संग्राम्, 'देवाणुपिया' देवानुमियाणां भवताम् 'चउरंगुल संपतं ' चतुरङ्गलमममाप्तं चतुरङ्गुलद्रस्थितम् 'वज्जं पडिसादरामि' वज्रमतिसंहरामि प्रति देवापि तेणेय उयागच्छामि' हा हा महाखेद है-अर्थात् वज्र के प्रक्षेप से भगवानकी आशानता होने की संभावना करके में बड़े खेद से हाहाकार करता हुआ भयभीत हो गया और मुझे ऐसा विचार हुआ कि अब 'हतो अहमंसि' में मारा गया 'तिकटु' ऐसा विचार करके - भगवान् की आशातना हुई ऐसा निश्चय करके मैं उसी समय 'ताए उक्काए' उस उत्कृष्ट दिव्य देवगति द्वारा वज्र के आगमन के मार्ग से होकर 'जाव' यावत् 'जेणेव - देवाणुम्पिए' जहां पर आप देवानुप्रिय विराजमान थे 'तेणेव उवागच्छामि' वहीं पर आया । वहां यावत् पदसे 'त्वरया चपलया' यहां से लगापर 'दिव्यया गत्या' दिव्य देवगति के द्वारा 'यत्रैव अशोकचरपादप, जहां पर उत्तम अशोक का वृक्ष है 'पृथिवो शीलापट्टकः' और उसके नीचे जहां पृथिवी शिलापट्टक है' वहां आया ऐसा यहां तक का पाठ ग्रहण हुआ है । देवाणुपियाणं' देवानुप्रिय आपसे 'चउरंगुलमसंपतं ' चार अंगुल दूर स्थित 'वज्रं साहरामि ' वज्रको मैंने पकड़ लिया 'वज्जपडि ४ने 'ताए उक्कट्ठाए' ते दृष्ट, हिव्य हेवगतिथी ते बभनी पाछ यो भने तेनी थीछे। थउडता पडता 'जाव जेणेव देवाणुप्पिए' [ यावत् ] नयां साथ देवानुप्रिय विशनभान छो, 'तेणेव उवागच्छामि' त्यां माग्यो, यहीं 'यावत' पहथी 'त्वरया चपलया' थी बहने 'दिव्यया गत्या' सुधीना, तेनी गतिना विशेष दर्शापते! सूत्रचाः श्रद्धषु १रायो छे. 'जाव जेणेत्र तेणेव उवागच्छामि'भां ? 'जाव' પદ્મ આવ્યું છે તેના દ્વારા નીચેને ભાવા શ્રદ્ગુણુ કરાયો છે-તરછા અનેક દ્વીપસમુદ્રોને પાર કરીને, જ ખૂદ્દીપના ભરતક્ષેત્રમાં આવેલા સુસુમારપુર નગરના અશોકવનખંડ ઉદ્યાનના અશોકવૃક્ષ નીચેના શિલાપટ્ટેક પર આપ વિરાજમાન છે, ત્યાં હું આપની समक्ष माग्यो छु ' देवाणुप्पियाणं ' : आय हेवानुप्रियथी ' चउरंगुलमसंपत्तं ' यार स्यांगण दूर रहेला 'वज्ज' साइरामि' 909 में पहडी सीधु छे. 'वज्जपडिसाहरणट्ट-' 1
SR No.009313
Book TitleBhagwati Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size37 MB
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